इस्तांबुल। तुर्की और स्वीडन के बीच के तनावग्रस्त हैं। दोनों देश खुलकर एक दूसरे का विरोध करने के लिए सामने आ गए है। इन्हीं विरोध प्रदर्शनों के बीच स्वीडन में इस्लाम में पवित्र मानी जाने वाली किताब को जलाया गया। इस किताब को जलाने का मामला अब तूल पकड़ने लगा है।
किताब को स्वीडन में जलाने के खिलाफ तुर्किये में रविवार को लगातार दूसरे दिन प्रदर्शन हुआ। करीब 250 लोग इस्तांबुल स्थित स्वीडिश महा वाणिज्यदूतावास के समक्ष एकत्र हुए और उन्होंने विरोध स्वरूप डेनमार्क के इस्लाम विरोधी कार्यकर्ता रासमुस पलदुन की तस्वीर जलाई। स्वीडन के दक्षिणपंथी नेता रासमस पलदुन ने शनिवार को स्टॉकहोल्म में तुर्किये के दूतावास के सामने इस्लाम की पवित्र किताब को कथित तौर पर आग के हवाले कर दिया था जिसके बाद रात में तुर्किये के इस्तांबुल और अंकारा शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
इस तथाकथित घटना के बाद से ही स्वीडन के खिलाफ तुर्की में काफी गुस्सा देखने को मिल रहा है। स्वीडन के नेता द्वारा उठाए गए कदम की हर तरफ आलोचना हो रही है। वहीं नेता रासमस पलदुन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग भी उठ रही है। इस घटना को लेकर इस्तांबुल में रविवार को प्रदर्शन करने वाले हाथ में हरे रंग के झंडे लिए हुए थे और उनके हाथों में बैनर था जिसमें लिखा था ‘‘हम स्वीडन की सरकार समर्थित इस्लामोफोबिया की निंदा करते हैं।’’ गौरतलब है कि तुर्किये के अधिकारियों ने स्टॉकहोल्म में इस्लाम विरोधी कार्यकर्ता को प्रदर्शन की अनुमति देने के फैसले को लेकर स्वीडन की निंदा की थी लेकिन राष्ट्रपति रसेप तैय्यब एर्दोआन ने अपने सप्ताहांत भाषण में इस पूरे प्रकरण पर कोई टिप्पणी नहीं की। बता दें कि धर्म ग्रंथ जलाए जाने का विरोध कुवैत, सऊदी अरब, जॉर्डन ने भी विरोध किया है।
स्वीडन के लिए नाटो की राह मुश्किल
इसी बीच तुर्की के रक्षा मंत्री ने स्वीडन का दौरा भी रद्द कर दिया है। गौरतलब है कि ये दौरा स्वीडन के नाटो सदस्य बनने के लिए काफी अहम था। तुर्की की तरफ से स्वीडन को नाटो में शामिल करने का काफी लंबे समय से विरोध हो रहा है। इसी बीच इस बवाल के बाद तुर्की से समर्थन की उम्मीद बिलकुल ना के बराबर हो गई है। स्वीडन के लिए नाटो की राह काफी मुश्किल हो गई है।
पहले भी हुआ है ऐसा
बता दें कि ये पहला मौका नहीं है जब दक्षिणपंथी नेता रासमस पलदुन ने इस्लाम की पवित्र किताब के खिलाफ कोई कदम उठाया है। इससे पहले बीते वर्ष उन्होंने रमजाम के पाक महीने में अपने एक प्रस्तावित कार्यक्रम में कुरान जलाए जाने के कार्यक्रम बनाया था, जिसे की बाद में निरस्त कर दिया था। इस कदम की मुस्लिम मुल्कों में काफी आलोचना हुई थी।