जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल ने हिरोशिमा में 1945 के परमाणु बम हमले के कोरियाई पीड़ितों से जुड़े स्मारक पर रविवार को एक साथ श्रद्धांजलि अर्पित की।
दोनों नेताओं ने जी7 शिखर सम्मेलन से इतर इस स्मारक का दौरा किया। वे जापान के युद्धकालीन क्रूरता संबंधी विवादों से प्रभावित संबंधों को ठीक करने के लिए मिलकर प्रयास कर रहे हैं।
यून तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन के अंतिम दिन रविवार को ‘आउटरीच’ सत्र के लिए जी7 देशों और सात अन्य अतिथि राष्ट्रों के नेताओं के साथ हिरोशिमा में हैं।
यून और किशिदा अपनी-अपनी पत्नियों के साथ स्मारक पहुंचे।
उन्होंने स्मारक के सामने सफेद फूल के गुलदस्ते रखे और 78 साल पहले हमले में मारे गए हजारों कोरियाई लोगों को सिर झुकाकर श्रद्धांजलि दी। यून इस स्मारक का दौरा करने वाले पहले दक्षिण कोरियाई नेता हैं। उनका यह कदम दोनों देशों के बीच नरम पड़ते रिश्तों को रेखांकित करता है।
बाद में वे दोनों अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ एक बैठक में शामिल हुए। इस बैठक में इन नेताओं ने सुरक्षा सहयोग को और गहरा करने पर चर्चा की जिसमें अमेरिका द्वारा क्षेत्र में अपने दो प्रमुख सहयोगियों के लिए परमाणु प्रतिरोध को मजबूत करने के तरीके भी शामिल हैं।
उन्होंने आर्थिक सुरक्षा में सहयोग और प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के साथ जुड़ने पर भी चर्चा की, जहां चीन अपने प्रभाव को मजबूत कर रहा है।
रविवार सुबह किशिदा के साथ बातचीत की शुरुआत में यून ने संबंधों को सुधारने को लेकर जापान के प्रधानमंत्री की ‘‘ईमानदारी एवं दृढ़ संकल्प’’ की प्रशंसा की।
यून द्वारा मार्च में तोक्यो की यात्रा के बाद पिछले दो महीने में किशिदा के साथ उनकी यह तीसरी बैठक थी।
उन्होंने कहा कि वह न केवल दोनों पक्षों के बीच, बल्कि वैश्विक मुद्दों पर भी ‘‘विश्वास के आधार पर’’ सहयोग को गहरा करने की उम्मीद करते हैं।
किशिदा ने वार्ता में कहा कि दोनों नेताओं का कोरियाई स्मारक का दौरा करना ‘‘जापान-दक्षिण कोरियाई संबंधों और वैश्विक शांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।’’
ऐसा माना जाता है कि पहले परमाणु हमले में हिरोशिमा के करीब 20,000 जातीय कोरियाई निवासियों की मौत हो गई थी।
गौरतलब है कि छह अगस्त 1945 को अमेरिका द्वारा हिरोशिमा में किए गए पहले परमाणु हमले में 1,40,000 लोग मारे गए थे। तीन दिन बाद दक्षिण-पश्चिमी जापान में नागासाकी पर किए गए दूसरे परमाणु हमले में 70,000 लोगों की जान गई थी।
अंतत: जापान ने एशिया पर कब्जा करने के अपने प्रयासों को समाप्त करके 15 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया था।