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बंदरों के आतंक से चाहिए मुक्ति, चीन नहीं भारत से नेपाल को चाहिए मदद, संसदीय समिति करेगी दौरा

”दिन के अंत में पड़ोसियों को एक-दूसरे की ज़रूरत होती है। हम पड़ोस में होने वाली चीजों से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं।” विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बीते दिनों ये बयान भारत के पड़ोसी देशों के लिए दिया था। चीन के बहकावे में आकर भारत को आंखे दिखाने वाले भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल को एक बार फिर से भारत से मदद की जरूरत पड़ गई है। नेपाल के लोग बंदरों के आतंक से परेशान हैं। इसलिए नेपाल में बंदरों के आतंक को लेकर एक बैठक की गई है। जिसमें इस समस्या के समाधान को लेकर चिंताएं जाहिर की गई। अब बंदरों के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए नेपाली सांसदों और डॉक्टरों की एक टीम भारत का दौरा करेगी।

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31 जनवरी को एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि हिमालयी देश में बंदरों के आतंक के बारे में चिंताएं उठाए जाने के बाद नेपाली सांसदों और डॉक्टरों की एक टीम बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने का अध्ययन करने के लिए भारत का दौरा करेगी। MyRepublica समाचार पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार, कृषि, सहकारी और प्राकृतिक संसाधन समिति के संसद सदस्यों की यात्रा संसदीय बैठकों में “बंदरों के आतंक के मुद्दे को उठाने और नियंत्रण उपायों की आवश्यकता पर जोर देने के बाद हुई है। इसमें कहा गया, ‘इस यात्रा को भारत सरकार ने समर्थन दिया है।’ दस पशु चिकित्सकों और पांच वन रेंजरों के साथ, समिति बधियाकरण के माध्यम से बंदरों की आबादी के नियंत्रण का अध्ययन करने के लिए हिमाचल प्रदेश की यात्रा करेगी।

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2016 में हिमाचल प्रदेश ने पहली बार बंदरों को एक साल के लिए वर्मिन घोषित किया, जिससे इस दौरान उनकी आबादी को नियंत्रित करने के लिए उन्हें मारने की अनुमति मिल गई। इसके बाद, सरकार ने 2021 में अनुरोध को अस्वीकार करने से पहले कम से कम चार बार अनुमति बढ़ाई। रिपोर्ट में कहा गया है, इस बीच एक अन्य नेपाली प्रतिनिधि सभा समिति के सदस्य संसदीय कूटनीति को बढ़ावा देने और पर्यटन को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्य से 30 जनवरी को भारत पहुंचे। अंतर्राष्ट्रीय संबंध समिति के सदस्य, जिसमें 11 सदस्य हैं, जिनमें से आठ सांसद हैं, 7 फरवरी को नेपाल लौटेंगे।

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