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India Egypt Relations: जिसकी वजह से पास नहीं हो पाया था पाकिस्तान का भारत विरोधी प्रस्ताव, उससे मिलने जा रहे हैं मोदी, नेहरू और नासिर के बाद कैसे परवान चढ़ी ये नई दोस्ती

पंडित नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटी ने 62 साल पहले अप्रैल 1961 में गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। उद्देश्य था कि हम न किसी पावर ब्लॉक के साथ रहेंगे और न ही उनके विरोध में। भारत की विदेश नीति ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ का मंत्री देकर अपनी एक अलग दुनिया बनाई। इस वक्त पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है।  रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत का चीन के साथ तनाव और चीन की अपनी ही सीमा से लगते तकरीबन सभी देशों के साथ विवाद। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जंग जारी है। ईरान और पाकिस्तान महंगाई से दो-दो हाथ कर रहा है। तुर्की और स्वीडन आपस में उलझे हुए हैं। उत्तर कोरिया के तानाशाह का अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया को मिसाइलों से थर्राना भी जारी है। यानी पूरी दुनिया में कुछ न कुछ घटित हो रहा है। लेकिन तमाम परिस्थितियों के बीच जियो पॉलिटिक्स भी तेजी से करवट लेता नजर आ रहा है। सभी देशों की निगाहें भारत पर टिकी हैं। वो क्या कर रहा है, किसके साथ कैसे रिश्ते रख रहा है, किसकी मुखालफत कर रहा है, किससे दोस्ती बढ़ा रहा है। अमेरिका हो या रूस चीन हो या जापान नजरें सभी की लगातार कायम हैं। तमाम बातों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 से 25 जून तक संयुक्त राज्य अमेरिका और मिस्र की अलग-अलग राजकीय यात्रा करने वाले हैं। विदेश मंत्रालय (एमईए) ने इसकी घोषणा की है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा न्यूयॉर्क में शुरू होगी, जहां वह 21 जून को संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह का नेतृत्व करेंगे। अमेरिका से वापस लौटते हुए मोदी मिस्र की यात्रा पर जाएंगे। इस यात्रा से व्यापार, निवेश,खेती, रक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग मजबूत होने की उम्मीद है। इस मामले से जुड़े लोगों ने बताया कि सुरक्षा से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा तक के क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिस्र की यात्रा पर होंगे।

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24 से 25 जून तक मिस्र की राजकीय यात्रा 
पीएम मोदी अपने दो देशों के दौरे के दूसरे चरण में मिस्र जाएंगे। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की मिस्र की यह पहली यात्रा होगी। वह 24 से 25 जून तक मिस्र की राजकीय यात्रा करने के लिए काहिरा जाएंगे। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी 26 जनवरी, 2023 को भारत के 74वें गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनकर दिल्ली आए थे। बता दें कि  दोनों देश इस साल राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। 
गणमान्य और अन्य लोगों से मुलाकात
राष्ट्रपति सिसी के साथ अपनी बातचीत के अलावा, प्रधानमंत्री मिस्र सरकार के वरिष्ठ गणमान्य व्यक्तियों, मिस्र की कुछ प्रमुख हस्तियों के साथ-साथ मिस्र में भारतीय समुदाय के साथ भी बातचीत कर सकते हैं। भारत और मिस्र के बीच संबंध प्राचीन व्यापार और आर्थिक संबंधों के साथ-साथ सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के बीच गहरे संबंधों पर आधारित हैं। जनवरी में राष्ट्रपति सिसी की भारत की राजकीय यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने पर सहमति बनी थी।
कश्मीर में हुए जी20 मिटिंग में नहीं पहुंचा था मिस्र
22 मई को मिस्र की तरफ से कोई भी डेलीगेट्स जी20 मीटिंग में नहीं पहुंचा तो पाकिस्तान की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। मिस्र के अलावा तुर्की और सऊदी अरब भी इस बैठक में शामिल नहीं हुए। बता दें कि मिस्र जी20 का सदस्य नहीं है। उसे बतौर गेस्ट इस मीटिंग में शामिल होने का न्यौता मिला था। इसके बावजूद मिस्र इस बैठक में शामिल नहीं हुआ। 
कोविड महामारी की वजह से स्थगित करनी पड़ी थी यात्रा
 2020 में प्रधानमंत्री मोदी मिस्र की यात्रा पर जाने वाले थे, लेकिन कोविड महामारी की वजह से यात्रा को स्थगित करनी पड़ी थी. अक्टूबर 2022 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मिस्र का दौरा किया था. उस वक्त विदेश मंत्री ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रपति अल सीसी के साथ बहुत ही अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं. वे पिछले कुछ वक्त से मिस्र जाना चाह रहे थे, लेकिन कोविड की वजह से ये मुमकिन नहीं हो पाया. एस जयंशकर ने आगे कहा कि मैं भरोसा दे सकता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी के जेहन में मिस्र यात्रा है।

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पहले नेहरू और नासिर, अब पीएम मोदी-अल सीसी
जब वर्ल्ड वॉर टू के बाद कोल्ड व़ॉर का दौर चल रहा था और दुनिया के अधिकतर देश दो धरों में साम्यवादी सोवियत संघ और पूंजीवादी अमेरिका के नेतृत्व में बंट गए थे। इसके साथ ही उस दौर में विश्व के अधिकाशं हिस्सों में औपनिवेशिक शासन का अंत होना शुरू हो गया और एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका व अन्य क्षेत्रों में कई नए देश दुनिया के नक्शे पर उभरने लगे। इसी दौर में गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने इन देशों के लिये दोनों गुटों से अलग रहकर एक स्वतंत्र विदेशी नीति रखते हुए आपसी सहयोग बढ़ाने का एक मज़बूत आधार प्रदान किया। जिसकी स्थापना में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ ब्रॉज टीटो और मिस्त्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर ने अहम भूमिका निभाई। कहा जाता है कि राजनीतिक स्तर पर दोनों देश इतने नजदीक थे कि भारत ने 1956 की सुएज संकट के दौरान मिस्र को गुप्त सैन्य सामान भेजा था। 1970 के देशक के आखिर और 80 के दशक के कुछ सालों को छोड़ दें तो मिस्र केसाथ भारत का संबंध लगातार सौहार्दपूर्ण रहा है। 1970 के दशक के आखिरी सालों में काहिरा ने सोवियत की अगुवाई वाले गुट से दूरी बनाते हुए अमेरिका के करीब जाना शुरू किया था। उस वक्त कुछ सालों के लिए दोनों देशों के बीच आपसी संबंध थोड़े शिथिल हुए थे। 1980 के दशक के बाद से भारत से मिस्र में प्रधानमंत्री के चार दौरे हुए। 1985 में जब राजीव प्रधानमंत्री थे। फिर पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान, आईके गुजराल (1997) और डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए। तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी ने मार्च 2013 में भारत का दौरा किया। जून 2014 में राष्ट्रपति सिसी के नेतृत्व वाली नई सरकार के सत्ता संभालने के बाद, तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अगस्त 2015 में काहिरा का दौरा किया। पीएम मोदी ने सितंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), न्यूयॉर्क के मौके पर राष्ट्रपति सिसी से मुलाकात की। प्रणब मुखर्जी और पीएम मोदी ने अक्टूबर 2015 में नई दिल्ली में तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के दौरान सिसी से मुलाकात की। राष्ट्रपति सिसी ने सितंबर 2016 में भारत की राजकीय यात्रा भी की थी। एक संयुक्त बयान जारी किया गया था, जिसमें राजनीतिक-सुरक्षा सहयोग, आर्थिक जुड़ाव और वैज्ञानिक सहयोग और सांस्कृतिक और लोगों-लोगों के संबंधों के तीन स्तंभों को एक नई साझेदारी के आधार के रूप में रेखांकित किया गया था।
रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग
मिस्र में शिक्षा की स्थित बेहद ही बदहाल है। वो भारत से मदद चाहता है। उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया में अभी भी मिस्र मजबूत सैन्य ताकत है। फिर जिस तरह का विकास इजरायल में हो रहा है, मिस्र उसकी बराबरी नहीं कर पा रहा है। इसलिए मिस्र को सैन्य मदद भी चाहिे। मिस्र रक्षा सेक्टर में भारत से काफी कुछ चाहता है। साल 2022 में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मिस्र का दौरा किया था। उस दौरान उन्होंने मिस्र के रक्षा मंत्री के साथ ही राष्ट्रपति अल सीसी के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता की थी। इस दौरान दोनों देशों ने साझा ट्रेनिंग, रक्षा सामग्रियों के उत्पादन और उपकरणों के रखरखाव पर सहयोग बढ़ाने से जुड़े समझौते ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए थे। स्वेज नहर और लाल सागर की सुरक्षा वे पहलू हैं, जिनसे मिस्र का भारत और हिंद महासागर कनेक्शन बढ़ जाता है। स्वेज नहर की सुरक्षा का जिम्मा मिस्र पर है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में मिस्र का सामरिक महत्व है। ऐसे में मिस्र के साथ मजबूत साझेदारी हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति को और मजबूत बनाएगा। 

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ब्रिक्स का सदस्य बनने पर मिस्र की नजर
मिस्र की नजर ब्रिक्स संगठन का सदस्य बनने पर है। पिछले साल जुलाई में मिस्र ने इसके लिए आवेदन भी किया था। 2021 में मिस्र ब्रिक्स न्यू डेवलपमेंट बैंक का सदस्य बना था। मिस्र के राष्ट्रपति अल सीसी चाहेंगे कि भारत के साथ करीबी के सहारे ब्रिक्स की सदस्यता के लिए भारत का समर्थन हासिल हो जाए। पिछले साल इस्लामिक देशों का सम्मेलन हुआ था। उसमें भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान एक प्रस्ताव लेकर आया था। मिस्र की कड़ी आपत्ति की वजह से वो पास नहीं हो पाया। इस तरह मिस्र भारत की तरफ़ गुडविल जेस्चर दिखा रहा है।
द्विपक्षीय व्यापार संबंधों की स्थिति क्या है?
मिस्र परंपरागत रूप से अफ्रीकी महाद्वीप में भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है। भारत-मिस्र द्विपक्षीय व्यापार समझौता मार्च 1978 से चल रहा है और यह मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज पर आधारित है। पिछले 10 वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार पांच गुना से अधिक बढ़ गया है। 2018-19 में यह 4.55 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया। महामारी के बावजूद, व्यापार की मात्रा 2019-20 में मामूली रूप से घटकर 4.5 बिलियन अमरीकी डॉलर और 2020-21 में 4.15 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई। वित्त वर्ष 2020-2021 से 75 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 7.26 बिलियन तक रहा। 21-22 में द्विपक्षीय व्यापार का तेजी से विस्तार हुआ है।

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