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नेपाल : ललिता निवास भूमि घोटाला मामले में जांच एजेंसी ने दो पूर्व प्रधानमंत्रियों से पूछताछ की

नेपाल की शीर्ष जांच एजेंसी ने ललिता निवास भूमि हड़प घोटाले में कथित भूमिका के लिए देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों माधव कुमार नेपाल और बाबूराम भट्टराई से पहली बार पूछताछ की है। जांच एजेंसी ने सोमवार को इसकी जानकारी दी।
भूमि हड़प घोटाला नेपाल और भट्टराई के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान हुआ था। उनके नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल ने इस मामले में नीति-स्तरीय निर्णय किए थे।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीआईबी) के प्रवक्ता नवराज अधिकारी ने बताया कि घोटाले की जांच के सिलसिले में रविवार की रात नेपाल और भट्टराई से पूछताछ की गई।
आरोप है कि सरकार की कीमती जमीन का एक बड़ा हिस्सा कुछ दलालों ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और कुछ राजनेताओं की मदद से फर्जी मालिक बनाकर हड़प लिया था।
नवराज ने कहा कि नेपाल पुलिस के सीआईबी अधिकारियों ने काठमांडू के बालुवतार में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास से सटे मूल्यवान भूमि को हथियाने से संबंधित घोटाले की जांच के सिलसिले में नेपाल और भट्टराई के बयान दर्ज किए हैं।

यह पहला मौका है जब सीआईबी ने मामले में पूर्व प्रधानमंत्रियों के बयान लिये हैं।
माधव कुमार नेपाल वर्तमान में सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) के अध्यक्ष हैं, जबकि भट्टराई नेपाल समाजवादी पार्टी के प्रमुख हैं। नेपाल 25 मई 2009 से 6 फरवरी 2011 तक जबकि भट्टराई 29 अगस्त 2011 से 14 मार्च 2012 तक प्रधानमंत्री पद पररहे।
‘द काठमांडू पोस्ट’ अखबार की एक खबर के अनुसार, ललिता निवास में लगभग 37 एकड़ (300 रोपनी) भूमि शामिल है और इसमें प्रधानमंत्री निवास, नेपाल राष्ट्र बैंक का केंद्रीय कार्यालय और प्रमुख सरकारी अधिकारियों के कुछ अन्य आवास स्थित हैं।
आरोप हैं कि नेपाल कैबिनेट ने सरकारी ज़मीन को निजी व्यक्तियों को हस्तांतरित करने की अनुमति दी थी, और भट्टराई कैबिनेट ने पशुपति तिकिंचा गुथी नामक फर्जी ट्रस्ट के नाम पर जमीन के पंजीकरण की अनुमति दे दी।
पांच फरवरी 2020 को ‘‘कमीशन फॉर इन्वेस्टिगेशन ऑफ एब्यूज़ ऑफ अथॉरिटी’’ (सीआईएए) ने भूमि हड़पने के संबंध में 175 व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए।

संवैधानिक भ्रष्टाचार विरोधी निकाय ने पूर्व प्रधानमंत्रियों नेपाल और भट्टराई सहित कई प्रमुख लोगों को बख्श दिया था। हालांकि, निकाय ने यह स्वीकार किया कि सरकारी भूमि को अवैध रूप से निजी हाथों में स्थानांतरित करने के निर्णय उनके कार्यकाल के दौरान लिए गए थे।
सीआईएए ने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्रियों को फंसाया नहीं गया, क्योंकि ये फैसले कैबिनेट के नीतिगत फैसले थे, जिस पर उसका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। नीतिगत निर्णयों का तात्पर्य राजनीतिक दलों द्वारा उनके चुनावी घोषणापत्रों के आधार पर लिए गए निर्णयों से है, जिसके आधार पर वे चुनाव लड़ते हैं।
आयोग ने सीआईएए कानून की धारा चार के आधार पर नेपाल और भट्टराई को दोषी नहीं ठहराया। यह अधिनियम कहता है कि भ्रष्टाचार विरोधी निकाय कैबिनेट या उसके तहत समितियों के ‘‘नीतिगत निर्णयों’’ की जांच नहीं कर सकता है।

इस महीने की शुरुआत में, घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार पूर्व लोक सेवक योगराज पौडेल द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए, नेपाल के उच्चतम न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को ललिता निवास मामले में सरकारी भूमि को व्यक्तियों के नाम पर हस्तांतरित करने के दौरान सरकार का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्रियों को सामने लाने का निर्देश दिया था।
‘माई रिपब्लिका’ समाचार पोर्टल की एक खबर के अनुसार, न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा एवं न्यायूमर्ति कुमार चुडाल की खंडपीठ ने कहा कि भूमि हस्तांतरण से संबंधित निर्णय लेने में शामिल किसी भी व्यक्ति को जांच से नहीं बख्शा जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में जिक्र किया है, ‘‘अब तक की जांच केवल काम के निर्धारित स्तर के कर्मचारियों एवं जमीन खरीदने वालों पर ही केंद्रित है, जबकि जिन लोगों ने निर्णय लिया या निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लिया, उन्हें जांच के दायरे से बाहर कर दिया गया। इसने संपूर्ण न्यायिक प्रणाली में जनता के भरोसे को भी खतरे में डाल दिया।

इस बीच, पूर्व प्रधानमंत्री भट्टराई ने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, ‘‘मैंने ललिता निवास भूमि हड़प घोटाले में मेरे मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में की गई पूछताछ के संबंध में शुरू से ही अपनी सार्वजनिक प्रतिबद्धता के अनुसार सीआईबी को सटीक जानकारी प्रदान करके अपना कर्तव्य पूरा किया है।’’
उन्होंने लिखा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि यह मामला देश के भीतर सभी प्रकार के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को खत्म करने के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा, जिससे सुशासन सुनिश्चित होगा।’’
मामले में सीआईबी पहले ही उच्च सरकारी अधिकारियों समेत एक दर्जन से अधिक लोगों को हिरासत में ले चुकी है।

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