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लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी… भारत के इन हिस्सों को शामिल कर नेपाल छापेगा 100 रुपये के नोट

नेपाल और भारत के बीच रोटी और बेटी का संबंध है। दोनों मुल्क के नेताओं को अगर भारत-नेपाल संबंध पर दो शब्द बोलना पड़े तो, भाषण ही इसी मुहावरे से शुरु होता है। लेकिन रोटी-बेटी के इस मुहावरे पर धीरे-धीरे ग्रहण लगता जा रहा है और भारत-नेपाल दोस्ती में दरार पड़ती नजर आ रही है। नेपाल ने शुक्रवार को एक मानचित्र के साथ 100 रुपये के नए नोट छापने की घोषणा कर दी है। इसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी के विवादास्पद क्षेत्रों को दिखाया गया है। इन क्षेत्रों पर नेपाल और भारत दोनों दशकों से दावा करते रहे हैं, जिससे एक कड़वी सीमा विवाद पैदा हो गया है। सरकारी प्रवक्ता रेखा शर्मा ने मीडिया को बताया कि प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की बैठक में नेपाल के नए मानचित्र को मुद्रित करने का निर्णय लिया गया, जिसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को 100 रुपये के बैंक नोटों में शामिल किया गया है। 

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नेपाल के सूचना और संचार मंत्री कैबिनेट ने कहा कि 25 अप्रैल और 2 मई को हुई कैबिनेट बैठकों के दौरान 100 रुपये के बैंक नोट को फिर से डिजाइन करने और बैंक नोट की पृष्ठभूमि में मुद्रित पुराने मानचित्र को बदलने की मंजूरी दे दी।  यह नेपाल द्वारा 18 जून, 2020 को एक संशोधित मानचित्र प्रकाशित करने के बाद आया, जिसमें अपने संविधान में संशोधन करके तीन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा क्षेत्रों को शामिल किया गया था।
नेपाल और भारत के बीच का सीमा विवाद
नेपाल और भारत के बीच 1800 किलोमीटर की खुली सीमा है। ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाली गोरखा के बीच हुई लड़ाईयों के बाद 1816 में दोनों के बीच सुगौली सीमा संधि हुई थी। लेकिन पिछले कुछ समय से नेपाल के पश्चिमी उत्तरी सीमा बिंदु को लेकर विवाद चल रहा है। पश्चिमी की सीमा महाकाली नदी को माना गया है। नेपाल का दावा है कि पश्चिमी सीमा कालापानी है, जो 1816 के बाद नेपाल में था। 1960 के दशक में भारत चीन युद्ध के आसपास से वहां भारत का कब्जा है। इसके साथ ही लिम्पियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को लेकर भी नेपाल ने विवाद खड़ा किया। चीन के साथ लगते हुए इस क्षेत्र की वजह से ये एक ट्राइजक्शन प्लाइंट है, जिसका अपना एक विशेष सामरिक महत्व है। पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय सत्ता से हटाए जाने से पहले नेपाल के पहले प्रधानमंत्री मोहन शमशेर राणा ने भारत के साथ मैत्री संधि की थी। 31 जुलाई 1950 को हुई इस संधि पर मोहन शमशेर और भारतीय राजदूत चंदेश्वर प्रसाद नारायण के हस्ताक्षर हैं। नेपाल में मानना है कि हस्ताक्षरकर्ता का ‘प्रोटोकॉल’ ही सही नहीं है। सत्ता बचाने के लिए राणाओं ने भारत से संधि की, जो नेपाल की सार्वभौम सत्ता को कमजोर करती है।

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भारत से पेट्रोलियम उत्पाद, चावल दवाइयों का आयात
विदेशी निवेश में भारत की 30% से ज्यादा हिस्सेदारी 
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