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नाइजर : फ्रांसीसी दूतावास पर हमला, तख्तापलट के समर्थकों ने रूसी झंडों के साथ निकाला मार्च

इस सप्ताह की शुरुआत में तख्तापलट करके नाइजर की सत्ता पर कब्जा करने वाले सैन्य जुंटा के समर्थन में रविवार को हजारों लोगों ने रूसी झंडों के साथ राजधानी नियामी में मार्च निकाला और इस दौरान फ्रांसीसी दूतावास पर हमला भी किया।
इस प्रदर्शन में शामिल लोगों के हाथों में रूसी झंडे थे जो रूसी राष्ट्रपति का नाम लेकर नारेबाजी कर रहे थे और पूर्व औपनिवेशिक शासक फ्रांस का विरोध कर रहे थे।
प्रदर्शनकारियों ने फ्रांसीसी दूतावास तक मार्च निकाला और उसके दरवाजे को आग के हवाले कर दिया। यह जानकारी घटना के समय दूतावास में मौजूद व्यक्ति ने दिया और संबंधित वीडियो को ‘एपी’ ने भी देखा है।
पूरे शहर में काले धुएं के गुबार उठते नजर आए। नाइजीरियाई सेना ने प्रदर्शनकारियों की भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की।

रूस का निजी सैन्य समूह वैगनर पहले ही पड़ोसी देश माली में काम कर रहा है और संभव है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने का देश का प्रभाव इस क्षेत्र में बढ़ाएंगे।
लेकिन अबतक यह स्पष्ट नहीं है कि नयी जुंटा सरकार मॉस्को का रुख करेगी या पश्चिमी साझेदारों के साथ सहयोग जारी रखेगी।
विद्रोहियों का कहना उन्होंने राष्ट्रपति मोहम्मद बाजोउम को अपदस्थ किया क्योंकि वह देश में बढ़ती जिहादी हिंसा से देश को सुरक्षित रखने में सक्षम नहीं थे।
नाइजीरिया की राजधानी अबूजा में पश्चिमी अफ्रीकी देशों के संगठन की रविवार को आपात बैठक हुई जिसमें नाइजर के साथ संबंधों को स्थगित करने और एक सप्ताह के भीतर राष्ट्रपति को पद पर बहाल नहीं करने पर सेना को बल प्रयोग के लिए अधिकृत करने का फैसला किया गया।

इसमें कहा गया कि यदि मांगें एक सप्ताह के भीतर पूरी नहीं होती हैं, तो नाइजर गणराज्य में संवैधानिक व्यवस्था बहाल करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करें जिसमें बल का प्रयोग शामिल हो सकता है।
इकोनॉमिक्स कमिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट (ईसीओडब्ल्यूएस) के अध्यक्ष उमर अलियू तोउरे ने बैठक के बाद कहा कि ईसीओडब्ल्यूएएस के सदस्य देशों के चीफ ऑफ स्टाफ तत्काल बैठक करेंगे।
तख्तापलट के कई दिनों के बाद नाइजर के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ती जा रही है और कुछ लोग देश में सैन्य शासन का समर्थन करने के लिए सड़क पर उतर आए हैं।
नाइजर को 1960 में फ्रांस से आजादी मिली थी और पहली बार शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण हुआ था और दो साल पहले राष्ट्रपति मोहम्मद बाजोउम ने सत्ता संभाली थी।
तख्तापलट करने वालों का कहना है कि उन्होंने राष्ट्रपति को अपदस्थ किया क्योंकि वह देश में जिहादी हिंसा को बढ़ने से रोकने में असफल रहे थे।

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