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नीरव मोदी को प्रत्यर्पण आदेश के खिलाफ ब्रिटेन के उच्चतम न्यायालय में अपील की अनुमति नहीं मिली

भगोड़े हीरा व्यापारी नीरव मोदी को बृहस्पतिवार को उसके प्रत्यर्पण के खिलाफ कानूनी लड़ाई में तब एक और झटका लगा जब लंदन स्थित उच्च न्यायालय ने उसके प्रत्यर्पण आदेश के खिलाफ उसे ब्रिटेन के उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
नीरव मोदी धोखाधड़ी और धनशोधन के आरोप में मुकदमे का सामना करने के लिए भारत में वांछित है।
लंदन में ‘रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस’ में न्यायमूर्ति जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ और न्यायमूर्ति रॉबर्ट जे ने फैसला सुनाया कि ‘‘अपीलकर्ता (नीरव मोदी) की उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति के अनुरोध वाली अर्जी खारिज की जाती है।’’

यह फैसला 51 वर्षीय हीरा व्यापारी की अपील दायर करने की दाखिल अर्जी पर भारत सरकार की ओर से ब्रिटेन की ‘क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस’ (सीपीएस)द्वारा जवाब दायर करने के करीब एक सप्ताह बाद आया।
उच्च न्यायालय का नवीनतम आदेश नीरव मोदी को नवीनतम अर्जी के संबंध में 150,247.00 पाउंड की विधिक लागत का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।
पिछले महीने, 51 वर्षीय हीरा कारोबारी की मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर दायर की गई अपील खारिज कर दी गई थी।

अदालत ने मनोरोग विशेषज्ञों के बयान के आधार पर कहा था कि उसे ऐसा नहीं लगता कि नीरव की मानसिक स्थिति अस्थिर है और उसके खुदकुशी करने का जोखिम इतना ज्यादा है कि उसे पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के दो अरब डालर ऋण घोटाला मामले में आरोपों का सामना करने के लिए भारत प्रत्यर्पित करना अन्यायपूर्ण और दमनकारी कदम साबित होगा।
नीरव मोदी मार्च 2019 में प्रत्यर्पण वारंट पर गिरफ्तारी के बाद से लंदन की वैंड्सवर्थ जेल में बंद है।

अब जब लंदन में उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने का नीरव मोदी का प्रयास विफल हो गया है, सैद्धांतिक रूप से, मोदी अपने प्रत्यर्पण को रोकने के लिए यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय (ईसीएचआर) में आवेदन कर सकता है। वह इस आधार पर आवेदन कर सकता है कि उसे निष्पक्ष सुनवायी की सुविधा नहीं मिलेगी और यह कि उसे उन स्थितियों में हिरासत में रखा जाएगा जो मानवाधिकारों पर यूरोपीय संधि के अनुच्छेद 3 का उल्लंघन करता है, जिसका ब्रिटेन एक हस्ताक्षरकर्ता है।
ब्रिटेन के गृह विभाग के सूत्रों ने संकेत दिया है कि यह अभी भी पता नहीं है कि प्रत्यर्पण कब हो सकता है क्योंकि नीरव मोदी के पास अभी भी कानूनी उपचार हैं।

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