साइकिडेलिक दवाओं की एक लंबे समय तक सूक्ष्म खुराक लेने से आपके मूड में सुधार हो सकता है, लेकिन इनके बारे में अभी भी बहुत कुछ हम नहीं जानते।
लंबे समय तक प्रतिबंधित रहने वाली साइकिडेलिक दवाएं एक बार फिर वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और क्लीनिक में स्थान पा रही हैं और ऐसे सबूत भी बढ़ रहे हैं कि ये मानसिक बीमारियों के इलाज में अहम हथियार साबित हो सकती हैं।
नये अनुसंधानों से साइकिडेलिक दवाओं के प्रति धारणा में बदलाव आया है।
हॉल्यूसिन (मदहोशी) पैदा करने वाली दवाएं जैसे मेस्क्लीन और प्सिलोकेबिन जो ‘मैजिक मशरुम’ में होते हैं का इस्तेमाल सदियों से सांस्कृतिक और धार्मिक अनुष्ठानों में होता रहा है।
इन वस्तुओं की अधिक खुराक लेने पर मतिभ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
हाल में हालांकि, साइकिडेलिक दवाओं की नियमित रूप से‘ सूक्ष्म’ खुराक लेने का चलन बढ़ा है जिससे हमारी चेतनावस्था में बदलाव नहीं होता है।
यह विचार वर्ष 2011 में ही सार्वजनिक बहस में आया और इसके बाद यह परिपाटी पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुई और इसके साथ ही दावा किया जाने लगा कि इसकेजरिये कई मानिसिक बीमारियों का इलाज हो सकता है और शारीरिक रूप से इसके लाभ होते हैं।
साइकिडेलिक दवाओं की सूक्ष्म खुराक लेने का सबसे आम उल्लेखित तरीका है कि हर तीन से चार दिन पर पारंपरिक मनोरंजन दवाओं की दसवें से बीसवें हिस्से को बतौर सूक्ष्म खुराक लिया जाए।
कई सूक्ष्म खुराक लेने वाले दावा करते हैं कि उनकी संज्ञात्मक और मानसिक सेहत में सुधार हुआ है;यह भी सबूत मिले हैं कि सूक्ष्म खुराक लेने से दर्द के प्रति धारणा, मूड और चेतना में बदलाव आता है। लेकिन अध्ययनों से यह भी संकेत मिलें हैं कि सूक्ष्म खुराक लेने का असर उपयोगकर्ता की उम्मीद की वजह से संभवत: होता हैजिसका अभिप्राय है कि वास्तविक कारण अब भी अज्ञात है।
उम्मीदों की वजह से या औषधीय गुणों की वजह से यह प्रभाव होता इससे परे यह तय है कि सूक्ष्म खुराक का असर लोगों पर होता है। एक अहम अध्ययन में सामने आया है कि 50 प्रतिशत अनुसंधान में शामिल हुए लोगों ने सूक्ष्म खुराक लेने के बादपांरपरिक अवसाद रोधी दवाएं लेना बंद कर दिया। इसी प्रकार 27.5 प्रतिशत लोगों ने दावा किया कि साइकिडेलिक दवाओं की सूक्ष्म खुराक लेना दर्द निवारक दवाओं को लेने से अधिक कारगर है।
साइकिडेलिक दवाओं की सूक्ष्म खुराक लेने वालों पर किए गए सर्वेक्षण आधारित अध्ययन में पाया गया कि इससे उनमें अवसाद के स्तर में कमी लाने और मूड ठीक करने में मदद मिली। इन नतीजों की अबतक प्रयोगशाला की अवस्था में पुनवृत्ति नहीं की जा सकी, लेकिन यह भी तथ्य है कि अबतक प्रयोगशाला के प्रयोगों में हिस्सा लेने वाले स्वस्थ व्यक्ति थे और उन्होंने केवल एक से सात खुराकें ही ली थीं।
ऐसा हो सकता है कि साइकिडेलिक दवाओं का अवसाद रोधी असर अधिक समय तक खुराक लेने से होता होगा या यह भी हो सकता है कि यह प्रभाव क्लीनिक आबादी में ही अंकन करने योग्य हो।
सर्वेक्षण और मोबाइल ऐप आधारित अध्ययनों में सामने आया कि साइकिडेलिक दवाओं की सूक्ष्म खुराक लेने वाले की चेतना बढ़ जाती है, वे विचारशील हो जाते हैं और उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ जाती है। साइकिडेलिक दवाओं की सूक्ष्म खुराक से धूम्रपान और मादक पदार्थों के सेवन में कमी लाने में मदद मिलती है।
सूक्ष्म खुराक लेने वाले लोग निम्न स्तर के विकारों की जानकारी देते हैं लेकिन साथ ही बताते हैं कि उनकी मनोविनोद वाली वस्तुओं के इस्तेमाल करने की इच्छा बढती है। हालांकि, अन्य वस्तुओं के इस्तेमाल पर साइकिडेलिक की सूक्ष्म खुराक के असर का प्रयोगशाला में आकलन नहीं किया गया है।
ऐसे सबूत है कि साइकिडेलिक दवाओं की सूक्ष्म खुराक से दिमाग में बदलाव आता है। एक अध्ययन जिसमें लिसर्जिक एसिड डाइइथाइलामाइड (एलएसडी) की सूक्ष्म खुराक की जांच की गई तो पता चला कि यह मस्तिष्क की लिम्बिक प्रणाली में बदलाव करता है जो मूड में बदलाव से जु़डा है।
इसी प्रकार प्सिलोसिबिन की सूक्ष्म खुराक संबंधी दो अध्ययनों में जानकारी मिली है कि यह सामान्य मोड नेटवर्क गति को मद्धिम कर देता है।
ये निष्कर्ष व्यापक रूप से उच्च खुराक साइकिडेलिक और पारंपरिक अवसाद रोधी तंत्र के नतीजों के अनुकूल है।
जबतक साइकिडेलिक दवाओं की सूक्ष्म खुराक(उदाहरण के लिए कम से कम से कम चार से छह हफ्ते की) की दीर्घ अवधिका अति नियंत्रित अवस्था में अध्ययन नहीं किया जाता और जबतक मानसिक बीमारियों से ग्रस्त आबादी में संभावित क्लीनिकल असर का अध्ययन नहीं किया जाता तबतक हम निश्चित तौर पर इन सूक्ष्म खुराक के साथ संभावित इलाज को लेकर कुछ भी निश्चित नहीं कह सकते।