नयी दिल्ली। असम के उल्फा उग्रवादियों के एक बैच को 1991-92 में प्रशिक्षण देने वाली पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस) उल्फा प्रमुख परेश बरुआ को अहम मानती थी और वह पूर्वोत्तर राज्य में अभियान चलाने के लिए एजेंसी की कमान संभालने की बरुआ की अनिच्छा के बावजूद उसे नाराज नहीं करना चाहती थी। एक नयी किताब में यह दावा किया गया है।
अनुभवी पत्रकार राजीव भट्टाचार्य की किताब ‘‘उल्फा: द मिराज ऑफ डॉन’’ में इस प्रतिबंधित समूह की 1970 के दशक में शुरुआत से लेकर अब तक की यात्रा का उल्लेख किया है, जबकि अरविंद राजखोवा की अगुवाई वाले एक धड़े और केंद्र के बीच शांति स्थापित करने को लेकर वार्ता चल रही है। बरुआ अब यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा-स्वतंत्र) के वार्ता-विरोधी गुट का नेतृत्व करता है और ऐसा माना जाता है कि वह चीन के युन्नान प्रांत में कहीं छिपा है। किताब में कहा गया है कि उल्फा उग्रवादियों के 40 कैडर के पहले बैच को 1991-92 में तीन समूहों में पाकिस्तान में प्रशिक्षण दिया गया था।
एक समूह को पेशावर के समीप प्रशिक्षण दिया गया और अन्य को अफगानिस्तान में कंधार एवं पाकिस्तान में सफेद कोह पर्वत के समीप दर्रा आदम खेल के हथियार बाजार में प्रशिक्षण दिया गया। लेखक ने इसमें कहा है, ‘‘बरुआ एजेंसी के समक्ष झुकने और उसके सभी फरमानों को मानने के लिए तैयार नहीं था। आखिरी बैठक में वह अचानक खड़ा हो गया और ‘गुडबॉय’ कहकर बैठक स्थल से चला गया।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘लेकिन आईएसआई जानती थी कि बरुआ बड़े काम की चीज है, जिसे नाराज नहीं होने दिया जा सकता।’’
इस किताब का विमोचन रविवार को यहां किया गया। इसमें दावा किया गया है कि आईएसआई जानती थी कि उल्फा के सहारे कई फायदे हासिल किए जा सकते हैं, जिसमें पूर्वोत्तर के अन्य अलगाववादी समूहों तक पहुंचना शामिल है, जिन्हें पाकिस्तान में प्रशिक्षण दिया जा सकता था। इस किताब में यह भी बताया गया है कि बरुआ कैसे बांग्लादेश में हत्या के चार प्रयासों से बचा था। इसके साथ ही इसमें बरुआ की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं का जिक्र किया गया है।