किसी भी देश की सैन्य ताकत से उसके आवाम में सुरक्षा की भावना पैदा होती है और देश की रक्षा के खातिर अपने जान की बाजी लगाना त्याग का सबसे बड़ा उदाहरण भी माना जाता है। भारतीय सेना ने कई ऐतिहासिक एयर बैटल लड़े हैं जिन्होंने युद्ध के मैदान पर भारत की एक मजबूत प्रतिष्ठा बनाने में मदद की है और अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए अभूतपूर्व कौशल का प्रदर्शन किया है। वीर चक्र, युद्ध सेवा मेडल जैसे सम्मान से नवाजे गए, अफ़्रीका के कांगो में भारतीय सेना के कमांडर के रूप में संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी जिनकी सराहना की गई। वायु सेना अकादमी, हैदराबाद और हेलीकॉप्टर प्रशिक्षण स्कूल, सिकंदराबाद में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित 30 मित्र देशों के अधिकारियों को प्रशिक्षित करने वाले डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन में प्रशिक्षण टीम के फैकल्टी और हेड डीन के रूप में भी कार्य किया है। ग्रुप कैप्टन अतनु गुरु ने लड़ाकू स्क्वाड्रन की कमान, कांगो, अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में भारतीय वायु सेना दल के कमांडर वायु सेना मुख्यालय में निदेशक संचालन और वायु सेना चयन बोर्ड के अध्यक्ष सहित कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को संभाला है। 2015 में रिटायरमेंट के बाद वो टीवी पर विभिन्न न्यूज चैनलों पर डिफेंस, एविएशन और सामरिक मुद्दों पर अपनी विशेषज्ञ टिप्पणियाँ देते हुए नजर आते हैं। आज हमारे साथ रक्षा और सामरिक मुद्दों पर बातचीत के लिए ग्रुप कैप्टन अतनु गुरु मौजूद हैं।
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प्रश्न: हिन्द महासागर में चीन जिस रणनीति को डेवलप करता दिख रहा है उसे “स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स” के नाम से जाना जाता है, इसके बारे में थोड़ा सा हमारे दर्शकों को बताए?
उत्तर: दक्षिणी छोर पर हिन्द महासागर के जरिए चीन भारत को घेरना चाहता है। ये थ्रेट टू इंडिया मेरिटाइम सिक्योरिटी है। भारत की हमारी पड़ोसी देशों में प्रभाव को घटाना चाहती है। इसी कोशिश में पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और मालदीव जैसे देशों का इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट, श्रीलंका के हंबनटोटा, बांग्लादेश के चिटगोंग पोर्ट, म्यांमार का क्यौकप्यू पोर्ट, मालदीव के फेयधूफिनोल्हु द्वीप को चीन ने अपना बेस बनाया। भारत को घेरने की इस नीति को चीन स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का नाम देता है। चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति उसकी उसी सिल्क रूट का हिस्सा है जिसे वो बेल्ट एंड रोड एनिसिएटिव का नाम देता है। चीन भारत को इसी माला के तहत दक्षिण दिशा में हिन्द महासागर में जगह-जगह से घेरने का प्लान बना रहा है। उसकी मंशा है कि ऊपरी सिरे से पहले ही चीन और पाकिस्तान की उपस्थिति है जबकि नीचे के हिस्से में पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और मालदीव जैसे देशों के सहारे नौसेना के जरिये भारत को घेरा जाए। ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ का जिक्र आज से करीब 19 साल पहले (2005 में) अमेरिकी के रक्षा मंत्रालय ने ‘एशिया में ऊर्जा का भविष्य’ नाम की एक खुफिया रिपोर्ट में किया था। कंबोडिया से शुरू होकर म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान से होते हुए ये रास्ता सुडान तक जाता है। अगर आप इस रास्ते को जोड़ते हैं तो ये साफ तौर पर भारत को घेरता हुआ दिखाई पड़ता है। भारत को घेरने की रणनीति के तहत ही चीन इन देशों के पोर्ट और द्वीप पर अपने बेस बना रहा है।
प्रश्न: क्या है भारत का नेकलेस ऑफ डायमंड
उत्तर: भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा रणनीति के लिए मोजाबिंक चैनल समेत दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर, चीन के भारी निवेश वाले पूर्वी अफ्रीकी तट को बेहद अहम मानता है। ये अभ्यास हिंद महासागर में पूर्वी अफ्रीकी देशों और द्वीपीय देशों के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा है। पिछले कुछ सालों में हिंद महासागर भारत और चीन के बीच टकराव का नया केंद्र बनता जा रहा है। भारत ने चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की नीति को मात देने के लिए नेकलेस ऑफ डायमंड नीति को मजबूत करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के ग्वादर एयरोप्ट पर चीन की मौजूदगी को काउंटर करने के लिए भारत ने ओमान में एक बेस सेट-अप किया है। डैकम पोर्ट से भारत का महत्वपूर्ण क्रूड ऑयल ट्रेड होता है। इसके अलावा ये पोर्ट अरेबियन सी और गल्फ ईडन दोनों पर ही अपनी नजर रखता है। जो ओमान के साथ भारत के अच्छे रिश्तों की वजह से संभव हो पाया है। भारत इंडोनेशिया के साथ सबांग बंदरगाह प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है। अफ्रीका में जिबूती, पश्चिम एशिया में ओमान के टुकम बंदरगाह पर सैन्य गतिविधि के लिए भारत को अनुमति प्राप्त है। चीन के पड़ोसी देशों में जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के साथ भारत के सैन्य समझौते हैं। जिसके अंतर्गत भारतीय नौसेना को इन देशों के बंदरगाहों पर तेल भरवाने मरम्मत करवाने और हथियार जुटाकर आगे बढ़ने का अधिकार है।
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प्रश्न: GJ-11 ड्रोन के जरिए जंग की तैयारी का नजारा सिंगापुर एयर शो में चीन ने दिखाया, ऐसे में भारत एविएशन के क्षेत्र में कितना तैयार है?
उत्तर: हमारी जो बीएमडी है, बेसिक मिसाइल डिफेंस वो हमारे देश में हमने खुद बनाया है। ये आज के दिन में शायद उतना काबिल नही हैं। लेकिन ये नेवर इंडिंग प्रोसेस है। हर दिन, हर साल डिफेंस इंडस्ट्री ऐसी है कि हर साल आपका पुराना चीज फ्रूल्ड हो जाता है और आपको कुछ नए चीज की खोज करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए जिसके पास आईफोन 6 है और उसे आईफोन 16 चाहिए। लेकिन उसे नहीं मिला तो आई फोन 6 से भी काम चल सकता है। लेकिन अगर मेरे पास 1999 का वेपन सिस्टम है और 2024 में उसका इस्तेमाल बिना किसी डेवलपमेंट और प्रोग्रेस के करूं तो हार मिलेगी।
प्रश्न: इजरायल ने ईरान के मिसाइल अटैक को अपने एयर डिफेंस सिस्टम से निष्प्रभावी कर दिया, चीन और पाकिस्तान जैसे दो तरफे खतरे का सामना कर रहे भारत ने अपने दुश्मनों के मिसाइल हमलों से बचने के लिए क्या कोई तैयारी की हुई है?
उत्तर: जब तक हम अपने खुद बनाने के काबिल नहीं हो जाते। हम उनसे पीछे ही रहे। लेकिन हमारे पास भी है। हमने अपना खुद बीएमडी बनवाया है। ये इजरायल के एरो एरियल डिफेंस सिस्टम है उसके समान है। जिसका इस्तेमाल करके उन्होने ईरान के स्ट्राइक को नकाम कर दिया। सारे के सारे उनके ड्रोन और मिसाइल सबको हवा में ही नष्ट कर दिया गया।