नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने उच्चतम न्यायालय से अपने खिलाफ दायर उस रिट याचिका को रद्द करने का अनुरोध किया है, जिसमें उनसे एक दशक के माओवादी विद्रोह के दौरान करीब 5,000 लोगों की मौत की कथित तौर पर नैतिक जिम्मेदारी लेने की मांग की गई है।
प्रधानमंत्री प्रचंड के खिलाफ उनके विवादास्पद बयान को लेकर जांच के लिए अदालत के आदेश की मांग करने वाली रिट याचिकाएं दायर की गई थीं। उच्चतम न्यायालय ने उन याचिकाओं पर 10 मार्च को प्रधानमंत्री को एक लिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने को कहा कि क्यों न उनके खिलाफ एक आदेश जारी किया जाए, जैसा याचिकाकर्ताओं ने मांग की है।
‘काठमांडू पोस्ट’ समाचार पत्र के अनुसार, प्रचंड ने बृहस्पतिवार को सर्वोच्च अदालत को भेजे अपने 13-सूत्री लिखित जवाब में कहा कि याचिका रद्द कर दी जानी चाहिए, क्योंकि इसका कोई संवैधानिक आधार और कारण नहीं है।
प्रचंड ने कहा कि नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 17(2) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और उनका बयान उन मौलिक अधिकारों के तहत था एवं सभी नागरिक समान तरीके से अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं।
प्रचंड ने कहा कि द्वारा संघर्ष के दौरान हुई सभी मौतों के लिए विद्रोही पक्ष का नैतिक जिम्मेदारी लेना व्यापक शांति समझौते और नेपाल के संविधान की भावना के खिलाफ है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उनका बयान पूरी तरह से एक राजनीतिक टिप्पणी थी और इसे न्यायिक प्रक्रिया से परे माना जाना चाहिए।
सीपीएन (माओवादी सेंटर) पार्टी के अध्यक्ष प्रचंड ने यह भी कहा कि उन्होंने उग्रवादी हिंसा के दौर में 5,000 मौतों की जिम्मेदारी कभी नहीं ली और उनके खिलाफ जांच की मांग वाली याचिकाओं को निरस्त कर दिया जाए।