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राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा: क्या कांग्रेस भारतीय प्रवासियों पर ‘मोदी मैजिक’ के इफेक्ट को कम कर पाने में कामयाब हो पाएगी?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी 31 मई को 10 दिनों के अमेरिका दौरे पर रवाना होने वाले हैं। सूत्रों के अनुसार राहुल 4 जून को न्यूयॉर्क के मैडिसन स्कवायर गार्डन में लगभग 5000 प्रवासी भारतीयों के साथ रैली करेंगे। इसके साथ ही वो पैनेल चर्चा और भाषण के लिए वॉशिंगटन और कैलिफोर्निया के स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी जाएंगे। अब तक, डायस्पोरा की प्रमुख भारतीय छवि एक सादगीपूर्ण रही है। प्रवासी भारतीयों के सदस्यों ने दुनिया में भारत के अनौपचारिक राजदूत के रूप में कार्य किया है। वे भारतीय संस्कृति का जश्न मनाते हैं और उसका प्रसार करते हैं, मित्र बनाते हैं और मातृभूमि के फायदे के लिए लोगों को प्रभावित करते हैं।

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भारत और इसके प्रवासी भारतीयों के बीच बातचीत को एक बार फिर से अधिक आवेशित, विवादास्पद और परिणामी बनाने के लिए कई कारक एक साथ आए हैं। भारतीय राजनीतिक वर्ग कभी भी इतना बंटा हुआ नहीं था जितना वर्तमान दौर में है। भारत की आंतरिक खाई 2024 के आम चुनावों के बड़ा कारक है, जिसकी वजह से प्रवासी भारतीयों को साधने की कोशिश की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्हाइट हाउस की राजकीय यात्रा पर जानेसे तीन सप्ताह से भी कम समय पहले राहुल गांधी की न्यूयॉर्क में प्रवासी भारतीयों के बीच एक रैली है।  वैसे उम्मीद है कि पीएम अमेरिका में प्रवासी कार्यक्रम को भी संबोधित करेंगे।
घऱेलू राजनीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाना
इस साल मार्च में यूके की अपनी यात्रा के दौरान, राहुल गांधी ने एनडीए सरकार के काम करने के तरीकों को लेकर आलोचना से पीछे नहीं हटे। अमेरिका में भी राहुल इसको लेकर मुखर नहीं होंगे इसकी कोई संभावना नहीं दिख रही। लोकप्रिय अमेरिकी धारणा इस बात को लेकर बनी हुई है कि डोमेस्टिक पॉलिटिक्स मस्ट इंड एट वॉटर्स एज। घरेलू विवादों को विदेश ले जाने की पारंपरिक भारतीय राजनीतिक अनिच्छा अब काम नहीं करती। कांग्रेस पार्टी का प्रवासी भारतीयों को लामबंद करने का एक लंबा इतिहास रहा है। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के दौरान, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रवासी भारतीयों की लामबंदी का नेतृत्व किया। कांग्रेसियों के अलावा, समाजवादी और कम्युनिस्टों ने विदेशों में भारतीयों के साथ-साथ दुनिया भर में प्रगतिशील ताकतों के साथ महत्वपूर्ण संबंध विकसित किए। जैसे-जैसे इन पार्टियों का ढाँचा कमज़ोर होता गया, उनका अंतर्राष्ट्रीयवादी जुड़ाव अनिश्चित और अप्रभावी होता गया।

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राहुल भारत के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश करेंगे?
भाजपा ने प्रवासी भारतीयों के साथ शक्तिशाली नई संभावनाओं पर अपनी पैठ बनाई। प्रवासी भारतीयों के साथ रैलियां विदेशों में पीएम मोदी की व्यस्तताओं का एक अभिन्न हिस्सा बन गई हैं। विदेशों में मुसीबत में फंसे भारतीयों को समर्थन देना दिवंगत सुषमा स्वराज का प्रमुख व्यवसाय बन गया था, जिन्होंने मोदी के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया था। दुनिया भर में खतरे के क्षेत्रों में फंसे भारतीयों को बचाना और वापस लाना भी एक उच्च प्राथमिकता बन गई है। अगर पीएम मोदी आज प्रवासी भारतीयों पर भारी पड़ते हैं, तो भारतीय समुदाय में गैर-बीजेपी ताकतों को उम्मीद है कि राहुल भारत के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश करेंगे। हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि क्या राहुल गांधी के पास अमेरिका और उसके बाहर भारतीय प्रवासियों पर मोदी के जादू को तोड़ने के लिए रणनीतिक कौशल और संगठनात्मक क्षमता है।

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