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BRICS देशों के बीच ‘सद्भावना’ का पैमाना है दक्षिण अफ्रीका से चीतों को भारत भेजा जाना: अधिकारी

दक्षिण अफ्रीका से “ऐतिहासिक” रूप से 12 चीते भारत भेजे जाना इन दोनों ब्रिक्स देशों के बीच सद्भावना का एक पैमाना है।दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह बात कही है।
भारत ने मूल रूप से 2022 के मध्य तक चीतों को देश में लाने की योजना शुरू की थी, लेकिन दोनों सरकारों के बीच एक सहमति पत्र को अंतिम रूप देने में देरी के कारण ऐसा नहीं हो पाया। फिलहाल इन चीतों को लिंपोपो प्रांत में एक रिजर्व में पृथक रखा गया है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के महानिरीक्षक डॉ. अमित मलिक ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक सहमति पत्र (एमओयू) है। यह एक महाद्वीप के जंगल से दूसरे महाद्वीप के जंगल में ले जाने की कवायद है। आमतौर पर पशुओं का आदान-प्रदान होता रहता है, लेकिन मौजूदा कवायद दोनों देशों के लिए एक चुनौती रही है।”
दक्षिण अफ्रीका के वानिकी, मत्स्य पालन और पर्यावरण विभाग में जैव विविधता एवं संरक्षण उप महानिदेशक फ्लोरा मोकोगोहलोआ ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका द्वारा भारत भेजे जाने वाले चीतों की वित्तीय कीमत असीमित है।”

उन्होंने कहा, “लंबे साझा इतिहास वाले दो ब्रिक्स भागीदारों के बीच कायम सद्भावना की वजह से ऐसा हो पाया है। किसी प्रजाति के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए उसे अन्य देश भेजने की सार्वजनिक सद्भावना के आगे कोई कीमत महत्व नहीं रखती।”
ब्रिक्स पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का समूह है।
दक्षिण अफ्रीका के लिंपोपो प्रांत में सात नर और पांच मादा चीतों को भारत भेजने की तैयारियों के बीच अधिकारी बृहस्पतिवार को मीडिया को संबोधित कर रहे थे।

ये चीते शनिवार को वायुसेना के एक विमान से ग्वालियर वायुसेना अड्डे पर भेजे जाएंगे।
मलिक ने कहा, “जहां तक भारत का संबंध है, यह परियोजना बहुत महत्वपूर्ण और बहुत प्रतिष्ठित है। इसका पूरा उद्देश्य भारत में चीतों को बसाना है जहां चीता एकमात्र विशाल मांसाहारी है जिसे 1947 में विलुप्त घोषित किया जा चुका है।”
मलिक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल नामीबिया से आठ चीते भारत भेजे जाने के बाद से इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नामीबियाई चीतों का बसाने के दौरान बहुत से अनुभव मिले हैं, जो अब दक्षिण अफ्रीकी चीतों को बसाने में काम आएंगे।

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