पाकिस्तान की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर पूर्व प्रधानमंत्री और पीपीपी संस्थापक जुल्फिकार अली भुट्टो को दी गई मौत की सजा को पलटने की मांग की गई। भुट्टो को 1979 में जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक के सैन्य शासन द्वारा फांसी दी गई थी। यह प्रस्ताव 6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सर्वसम्मति से यह राय दिए जाने के कुछ दिनों बाद पारित किया गया था कि हाई-प्रोफाइल मामले की बहुप्रतीक्षित समीक्षा में पूर्व प्रधान मंत्री को निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया नहीं मिली।
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18 मार्च 1978 को लाहौर उच्च न्यायालय ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक सदस्यों में से एक, अहमद रज़ा कसूरी की हत्या का आदेश देने के आरोप में भुट्टो को मौत की सजा सुनाई। जियो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल असेंबली (एनए) द्वारा अपनाए गए और पीपीपी की शाज़िया मैरी द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में भुट्टो के मुकदमे और उसके बाद दोषी ठहराए जाने को न्याय का घोर उल्लंघन माना गया। यह बेगम नुसरत भुट्टो साहिबा, शहीद मोहतरमा बेनज़ीर भुट्टो और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कार्यकर्ताओं के संघर्षों को सलाम करता है जिन्होंने इस सच्चाई को स्थापित करने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।
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शीर्ष अदालत की राय 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा अपने ससुर भुट्टो की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने और 4 अप्रैल, 1979 को उनकी फांसी की सजा पर फिर से विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भेजे गए एक विशेष मामले पर आधारित थी। संयोग से 10 मार्च को जरदारी दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए। प्रस्ताव में 44 साल पहले भुट्टो के साथ हुए घोर अन्याय को अंततः अपने फैसले में स्वीकार करने और स्वीकार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सराहना की गई।