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कोलंबो । श्रीलंका में नई नेशनल पीपल्स पावर (एनपीपी) सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बिजली संयंत्रों, पारेषण और वितरण प्रक्रियाओं का निजीकरण नहीं करने की घोषणा की। सरकार ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के राहत पैकेज कार्यक्रम के तहत किसी प्रमुख आर्थिक सुधार को पलटने की घोषणा की है। सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की सरकार द्वारा इस वर्ष जून में स्वीकृत विद्युत अधिनियम को रद्द कर दिया और सरकारी विद्युत इकाई सीलोन विद्युत बोर्ड (सीईबी) में बड़े सुधारों की घोषणा की।
विद्युत अधिनियम रद्द किए जाने के बाद मार्क्सवादी एनपीपी ट्रेड यूनियनों ने इसके खिलाफ आंदोलन किया था। सीईबी श्रम संघ के नेता 14 नवंबर को होने वाले संसदीय चुनाव में एनपीपी के उम्मीदवार हैं। सीईबी ने सोमवार को बयान में कहा कि इकाई के निजीकरण कार्यक्रम को समाप्त कर दिया जाएगा और सीईबी सुधार अधिनियम 2024 में संशोधन करने का संकल्प लिया गया है। इसमें कहा गया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बिजली संयंत्रों, पारेषण और वितरण प्रक्रियाओं का निजीकरण नहीं किया जाएगा। सीईबी सुधार अधिनियम 2024 ने बिजली उत्पादन में निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा का मार्ग प्रशस्त किया है।
इस कदम का उद्देश्य सार्वजनिक वित्त पर बोझ कम करना और 2030 तक अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी को 70 प्रतिशत तक बढ़ाना है। सीईबी सुधारों का उद्देश्य राजकोषीय घाटे को कम करना था, जो 2023 में तय किए गए करीब तीन अरब डॉलर के कार्यक्रम में श्रीलंका द्वारा आईएमएफ के लिए की गई एक प्रमुख प्रतिबद्धता थी। एनपीपी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके की सरकार का दावा है कि सीईबी का निजीकरण नए राष्ट्रपति को मिले जनादेश के विरुद्ध है। दिसानायके ने सितंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में 42 प्रतिशत वोटों के साथ जीत हासिल की थी। राष्ट्रीय विमानन कंपनी श्रीलंकन एयरलाइंस का निजीकरण न करने की घोषणा के बाद एनपीपी सरकार द्वारा सुधार नीति में यह दूसरा बड़ा फैसला है।