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India की यात्रा से पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति विक्रमसिंघे टीएनए के साथ वार्ता करेंगे

कोलंबो। श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे इस सप्ताह भारत की पहली आधिकारिक यात्रा के लिए रवाना होने से पहले तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक स्वायत्तता की पुरानी मांग के निपटारे की कोशिश के तहत संसद में मंगलवार को ‘तमिल नेशनल अलायंस’ (टीएनए) के साथ वार्ता करेंगे। सूत्रों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
टीएनए उन दलों का गठबंधन है जो उत्तर और पूर्व क्षेत्रों के तमिलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

सूत्रों ने बताया कि कोलंबो। श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे इस सप्ताह भारत की पहली आधिकारिक यात्रा के लिए रवाना होने से पहले तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक स्वायत्तता की पुरानी मांग के निपटारे की कोशिश के तहत संसद में मंगलवार को ‘तमिल नेशनल अलायंस’ (टीएनए) के साथ वार्ता करेंगे। सूत्रों ने सोमवार को यह जानकारी दी। टीएनए उन दलों का गठबंधन है जो उत्तर और पूर्व क्षेत्रों के तमिलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूत्रों ने बताया कि टीएनए और विक्रमसिंघे के बीच वार्ता मंगलवार दोपहर को संसद में होगी। यहां विदेश कार्यालय के अधिकारियों ने बताया कि विक्रमसिंघे 20 जुलाई को नयी दिल्ली रवाना होंगे और वह 21 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करेंगे।

विक्रमसिंघे ने तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक स्वायत्तता की पुरानी मांग के निपटारे के लिए टीएनए के साथ दिसंबर से वार्ता शुरू की है। विक्रमसिंघे ने भारत समर्थित 13वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू करने का विचार रखा और इसका शक्तिशाली बौद्ध धार्मिक नेताओं ने विरोध किया। पहले भी ऐसा ही हुआ है। संविधान के 13ए संशोधन में तमिल समुदाय को सत्ता सौंपने का प्रावधान है। भारत 13ए को लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है जिसे 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद लाया गया था।

तमिल पक्ष ने सैन्य उद्देश्यों के लिए रखी गई निजी भूमि को छोड़े जाने, तमिल राजनीतिक कैदियों को रिहा किए जाने और संघर्षों में हुई क्षति की भरपाई किए जाने जैसे चिंता के मुद्दों को हल करने पर जोर दिया। कुछ भूमि को छोड़ दिया गया है और कुछ कैदियों को भी रिहा कर दिया है, लेकिन तमिल पक्ष मुख्य रूप से असंतुष्ट हैं। कुछ पूर्व तमिल दलों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह विक्रमसिंघे पर 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने का दबाव बनाएं। ये दल टीएनए का हिस्सा नहीं हैं। इस समूह में ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (लिट्टे) के पुनर्वासित पूर्व सदस्य की ‘डेमोक्रेटिक फाइटर्स पार्टी’ भी शामिल है।

लिट्टे ने एक अलग तमिल देश बनाने के लिए तीन दशक तक अलगाववादी संघर्ष किया था। इस बीच, मत्स्य पालन राज्य मंत्री पियाल निशांत ने कहा कि भारतीय मछुआरों द्वारा श्रीलंकाई जलक्षेत्र में ‘‘अवैध रूप से मछली पकड़ने’’ के जटिल मुद्दे पर भी भारत यात्रा के दौरान चर्चा की जाएगी। श्रीलंका का तमिलों के साथ विफल वार्ता का पुराना इतिहास रहा है। तमिल-बहुल उत्तर और पूर्व के लिए एक संयुक्त प्रांतीय परिषद की प्रणाली बनाने वाले 1987 के भारतीय प्रयास कमजोर पड़ गए क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय ने दावा किया कि यह पूर्ण स्वायत्तता नहीं है।

विक्रमसिंघे ने तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीतिक स्वायत्तता की पुरानी मांग के निपटारे के लिए टीएनए के साथ दिसंबर से वार्ता शुरू की है।
विक्रमसिंघे ने भारत समर्थित 13वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू करने का विचार रखा और इसका शक्तिशाली बौद्ध धार्मिक नेताओं ने विरोध किया। पहले भी ऐसा ही हुआ है।
संविधान के 13ए संशोधन में तमिल समुदाय को सत्ता सौंपने का प्रावधान है। भारत 13ए को लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है जिसे 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद लाया गया था।

तमिल पक्ष ने सैन्य उद्देश्यों के लिए रखी गई निजी भूमि को छोड़े जाने, तमिल राजनीतिक कैदियों को रिहा किए जाने और संघर्षों में हुई क्षति की भरपाई किए जाने जैसे चिंता के मुद्दों को हल करने पर जोर दिया। कुछ भूमि को छोड़ दिया गया है और कुछ कैदियों को भी रिहा कर दिया है, लेकिन तमिल पक्ष मुख्य रूप से असंतुष्ट हैं।
कुछ पूर्व तमिल दलों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह विक्रमसिंघे पर 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने का दबाव बनाएं। ये दल टीएनए का हिस्सा नहीं हैं। इस समूह में ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (लिट्टे) के पुनर्वासित पूर्व सदस्य की ‘डेमोक्रेटिक फाइटर्स पार्टी’ भी शामिल है।

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लिट्टे ने एक अलग तमिल देश बनाने के लिए तीन दशक तक अलगाववादी संघर्ष किया था।
इस बीच, मत्स्य पालन राज्य मंत्री पियाल निशांत ने कहा कि भारतीय मछुआरों द्वारा श्रीलंकाई जलक्षेत्र में ‘‘अवैध रूप से मछली पकड़ने’’ के जटिल मुद्दे पर भी भारत यात्रा के दौरान चर्चा की जाएगी।
श्रीलंका का तमिलों के साथ विफल वार्ता का पुराना इतिहास रहा है।
तमिल-बहुल उत्तर और पूर्व के लिए एक संयुक्त प्रांतीय परिषद की प्रणाली बनाने वाले 1987 के भारतीय प्रयास कमजोर पड़ गए क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय ने दावा किया कि यह पूर्ण स्वायत्तता नहीं है।

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