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मोदी सरकार का हैरतअंगेज फैसला! भारत के तगड़े एक्शन से कांप उठा चीन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एस जयशंकर को लगातार दूसरी बार विदेश मंत्री क्यों बनाया? इसका पहला जवाब आ चुका है। पद संभालने के साथ ही एस जयशंकर ने पाकिस्तान के साथ साथ चीन पर अपना पहला वज्र गिरा दिया है। इसी साल मार्च अप्रैल के दौरान चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 30 जगहों के नाम बदल दिए थे। इसके साथ ही नया चीनी नक्शा भी जारी किया गया था। उस समय भारत ने कड़ी आपत्ति जाहिर की थी और हमारे देश में भी विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर चीन के सामने सरेंडर करने का आरोप लगाया था। लगातार तीसरी बार मोदी सरकार बनते ही चीन को अब उसी की भाषा में जवाब देने का मन बना लिया गया है। सूत्रों के मुताबिक भारत भी अब एलएसी से सटे चीन के कब्जे वाले क्षेत्रों के नाम बदलने जा रहा है। भारत का ये कदम विस्तारवादी चीन को सबक सिखाने वाला है। 

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को इस बात का अंदाजा तो होगा कि कूटनीति के मैदान में मोदी और जयशंकर की जोड़ी इस बार ज्यादा आक्रमकता से खेलेगी। लेकिन उन्हें इस बात का कतई अंदाजा नहीं होगा कि पहले ही दिन से पावर हिटिंग शुरू हो जाएगी। विदेश मंत्रालय में चीन को जवाब देने वाली लिस्ट तैयार है। भारत एलएसी के उस पार चीन के नियंत्रण वाली 25 से 30 जगहों के नाम बदलने का फैसला कभी भी ले सकता है। सूत्रों के मुताबिक जिन जगहों के नाम बदले जाएंगे उनकी लिस्ट तैयार है। इस लिस्ट में 11 पहाड़, 4 नदियां, 1 तालाब और करीब 12 रिहाइशी इलाके शामिल हैं। इनके चीनी नाम नहीं बल्कि तिब्बती नाम दर्द किए जाएंगे। सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार के फैसले के बाद सेना नए नाम के साथ नक्शा भी जारी कर सकती है।

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मोदी सरकार का ये कदम चीन के उस पैंतरे के खिलाफ है जिसमें मार्च अप्रैल के दौरान 30 जगहों के नाम बदल दिए थे। भारत की तरफ से भी इसपर तगड़ा रिस्पॉन्स देखने को मिला है। भारत ने कहा है कि नाम बदलने से घर नहीं बदलता है। चीन ने जिन 30 जगहों के नाम बदले थे उनमें 11 रिहायशी इलाके, 12 पर्वत, 4 नदियां, 1 पर्वत और 1 पहाड़ों से निकलने वाला रास्ता है। चीन ने इन सभी नामों को चीनी भाषा, तिब्बत और रोमन में जारी किया था। पिछले सात सालों में अरुणाचल को अपना हिस्सा बताने का दुस्साहस चीन ने चौथी बार किया है।

अमेरिकी नेतृत्व भले ही ‘एक चीन’ नीति को लेकर असमंजस में हो, लेकिन भारत ने पिछले एक दशक से चीनियों के लिए जादुई शब्द नहीं बोले हैं, जबकि वह निर्वासित तिब्बती नेतृत्व के साथ-साथ दक्षिण चीन सागर में नौवहन की स्वतंत्रता का खुला समर्थन कर रहा है। 488 किमी एलएसी पर भारतीय सैन्य सीमा बुनियादी ढांचे ने मोदी शासन के तहत बेहतरीन छलांग लगाई है और यह सुनिश्चित करने के लिए वर्गीकृत प्रयास भी किए जा रहे हैं कि सबसे खराब स्थिति में भी भारतीय सैनिकों के पास गोला-बारूद और तोपखाने की कमी न हो। 

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