आज की तारीख में अगर हम पाकिस्तान के अलावा किसी और एक देश का जिक्र करें जिसके साथ भारत के रिश्ते सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। तपाक से नाम कनाडा का नाम आ जाता है। खालिस्तान के मामले को लेकर भारत पिछले कई सालों से कनाडा से ये उम्मीद जता रहा है कि वो अलगाववाद और खालिस्तानियों के खिलाफ कुछ न कुछ ठोस और सख्त कार्रवाई करेगा। कनाडा भारतीय नागरिकों और अधिकारियों को सुरक्षा दे पाने में पिछले कई सालों में असमर्थ साबित हुआ है। हालांकि पिछली असहमतियों के कारण संबंधों में तनाव आया है, लेकिन कोई भी खुले टकराव के इस स्तर तक नहीं पहुंचा है। 1974 में भारत ने एक परमाणु उपकरण का विस्फोट करके दुनिया को चौंका दिया, जिस पर कनाडा ने नाराजगी जताई, जिसने भारत पर एक कनाडाई रिएक्टर से प्लूटोनियम निकालने का आरोप लगाया, जो कि केवल शांतिपूर्ण उपयोग के लिए दिया गया एक उपहार था। अमेरिकी थिंक टैंक विल्सन सेंटर के माइकल कुगेलमैन ने बीबीसी को बताया, “यह रिश्ता कई सालों से गिरावट की राह पर है, लेकिन अब यह निचले स्तर पर पहुंच गया है।
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क्या कनाडा के साथ भारत का ये विवाद अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया?
कनाडा और भारत के बीच के विवाद पर अलग-अलग देशों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई। कनाडा से जुड़े मामले को फ़ाइव आइज़ देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और न्यूज़ीलैंड) ने चिंताजनक स्थिति बताया। हालांकि कनाडा को छोड़कर बाकी इन देशों ने भारत के ख़िलाफ़ सीधे तौर पर कोई कड़ा बयान नहीं दिया। इसके पीछे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का महत्व अहम रोल अदा करता है। सभी ने यही कहा है कि कानून का पालन होना चाहिए और ऐसी एक्स्ट्रा-टेरेटोरियल किलिंग्स ठीक नहीं। कुल मिलाकर देंखे तो फ़ाइव आइज़ देशों से बहुत ही नियंत्रित प्रतिक्रिया आई।
किसी देश को आतंकवाद प्रायोजक घोषित करने की पॉवर किसके पास है?
आतंकवाद प्रायोजक स्टेट एक ऐसा दर्जा जो संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्यों का समर्थन करने के लिए कुछ देशों पर लागू किया जाता है। यह पदनाम केवल अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा ही लागू किया जा सकता है। इस स्थिति में कानूनी, आर्थिक और राजनयिक परिणाम शामिल हैं। जैसा कि अमेरिकी विदेश विभाग की वेबसाइट में उल्लेख किया गया है, राज्य सचिव द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्यों के लिए बार-बार समर्थन प्रदान करने के लिए निर्धारित देशों को तीन कानूनों निर्यात प्रशासन अधिनियम की धारा 6 (जे), हथियार निर्यात नियंत्रण की धारा 40 अधिनियम, और विदेशी सहायता अधिनियम की धारा 620ए के अनुसार नामित किया गया है।
इससे क्या असर पड़ता है और अभी कौन कौन इस लिस्ट में शामिल
एक बार इस तरह नामित होने के बाद इन देशों को कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है, जैसे अमेरिकी विदेशी सहायता पर प्रतिबंध, रक्षा निर्यात और बिक्री पर प्रतिबंध, दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं के निर्यात पर कुछ नियंत्रण और विविध वित्तीय और अन्य प्रतिबंध शामिल हैं। इसके अलावा, ये देश अमेरिकी संघीय और राज्य अदालतों में प्रतिरक्षा खो देते हैं। इसका मतलब यह है कि देश अब अमेरिकी नागरिकों, अमेरिकी सशस्त्र बलों के सदस्यों और अमेरिकी सरकारी कर्मचारियों द्वारा अमेरिका में लाए गए मुकदमों से अछूता नहीं रहेगा। वर्तमान में अमेरिका ने चार देशों क्यूबा, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया), ईरान और सीरिया को इस श्रेणी में रखा है।
भारत क्या क्या कर सकता है?
वर्तमान में भारत के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। हालाँकि, यह प्रतिबंध या तो आर्थिक या रक्षा-संबंधी लग सकता है। नई दिल्ली कनाडा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकती है, जिसका ओटावा पर काफी असर पड़ सकता है। भारत कनाडा की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा सकता है, जो पहले से ही भारत के पक्ष में व्यापार असंतुलन का सामना कर रहा है।
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