अमेरिकी इतिहास में राष्ट्रपतियों और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की हत्या या उनकी हत्या के प्रयास के कई उदाहरण मौजूद हैं। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप का मामला सबसे अलग है। यह हमला सोशल मीडिया के ऐसे युग में हुआ है जहां समाज में विभाजन की खाई को चौड़ा होते और हिंसा फैलते समय नहीं लगता। 6 जनवरी 2021 को यूएस कैपिटल के विद्रोह को ही देखें तो पता चलता है कि अमेरिका में राजनीतिक हिंसा कितनी तेजी से भड़क सकती है। इसलिए सवाल उठता है कि क्या इस बार का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव शांतिपूर्ण नहीं रहने वाला है? सवाल यह भी उठता है कि दुनियाभर को हथियारों की सप्लाई करने वाले अमेरिका के हथियार कहीं उसके लिए भस्मासुर तो नहीं साबित हो रहे? ट्रंप पर हमले के बाद पूरे अमेरिका में जिस प्रकार का गुस्सा देखा जा रहा है वह अप्रत्याशित है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने देशवासियों से शांति की अपील तो कर दी है लेकिन सवाल उठता है कि क्या उस अपील का कोई असर होगा?
दूसरी ओर, खुद पर गोली चलने के तुरंत बाद खून से लथपथ ट्रंप ने उठ कर जिस तरह लड़ाई लड़ने का संकल्प जताया उससे वह एक फाइटर के रूप में देखे जा रहे हैं। बंधी हुई मुट्ठी के साथ लहूलुहान ट्रंप की छवि निश्चित रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार अभियान का रुख पलट सकती है और ट्रंप के लिए भारी समर्थन जुटा सकती है। देखा जाये तो यह हमला भले ट्रंप पर हुआ हो लेकिन इससे बाइडन को सबसे बड़ा झटका लगा है। पेनसिल्वेनिया में चुनावी रैली के दौरान ट्रंप पर गोली चलाए जाने की घटना के बाद 24 घंटे से भी कम समय में राष्ट्रपति ने तीसरी बार संबोधन देते हुए शांति की जो अपील की उससे स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है।
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इसके अलावा, ट्रंप पर हुआ हमला अमेरिका की सीक्रेट सर्विस की विफलता को भी दर्शाता है। सवाल उठता है कि हमलावर ट्रंप के इतने करीब हथियार लेकर कैसे पहुँच गया था? बताया जा रहा है कि अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में स्पष्टीकरण देने के लिए सीक्रेट सर्विस, होमलैंड और एफबीआई के अधिकारियों को बुलाया जा सकता है। हम आपको बता दें कि अमेरिका में राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपतियों की सुरक्षा का जिम्मा सीक्रेट सर्विस देखती है। जबकि सुरक्षा विभाग के तहत आने वाला होमलैंड विभाग सीक्रेट सेवा संचालन की निगरानी करता है।
जहां तक ट्रंप की सुरक्षा की बात है तो बताया जा रहा है कि उनके चुनाव अभियानों के दौरान स्थानीय पुलिस कार्यक्रम स्थल की सुरक्षा के काम में सीक्रेट सर्विस की सहायता करती है। ट्रंप की रैलियों में हजारों लोग शामिल होते हैं। यह रैलियां अक्सर खुले में होती हैं और घंटों तक चलती हैं। कार्यक्रम से पहले एजेंट बम या अन्य खतरों के लिए स्थल की जांच करते हैं और उसके बाद ही ट्रंप वहां पहुंचते हैं। कानून प्रवर्तन अधिकारी आम तौर पर लोगों को ट्रंप के करीब जाने से रोकते हैं। कार्यक्रम स्थल में आने के लिए लोगों को एक मेटल डिटेक्टर से गुजरना पड़ता है। सशस्त्र सुरक्षा एजेंट सभी उपस्थित लोगों के बैग और यहां तक कि पर्स की भी तलाशी लेते हैं। इसके अलावा सीसीटीवी कैमरों के जरिये भी आसपास की निगरानी की जाती है लेकिन फिर भी ट्रंप पर हमला होना दर्शाता है कि सुरक्षा व्यवस्था में चूक तो हुई है।
जहां तक डोनाल्ड ट्रंप पर हमला करने वाले शख्स की बात है तो बताया जा रहा है कि गोली चलाने वाला 20 वर्षीय थॉमस मैथ्यू क्रुक्स पंजीकृत रिपब्लिकन था और वह नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव में पहली बार मतदान करता। वह ट्रंप की रैली स्थल से लगभग 56 किमी दक्षिण में बेथेल पार्क के पिट्सबर्ग उपनगर में रहता था। उसकी कार और घर के अंदर विस्फोटक सामग्री मिली है जोकि दर्शाती है कि वह किस विचारधारा का था।
बहरहाल, एफबीआई की जांच के शुरुआती निष्कर्षों को देखें तो ऐसा लगता है कि ट्रंप पर गोली चलाने वाले युवक ने अकेले ही इस घटना को अंजाम दिया। वैसे इस घटना की जांच घरेलू आतंकवाद के पहलू से भी की जा रही है। अमेरिकी राजनीति में एक चीज और उभर कर आ रही है कि अमेरिका में दोनों पार्टियों की ओर से विभाजनकारी और अतिवादी राजनीतिक अभियान अब आम बात हो गई है। अमेरिकी नेता हिंसा छोड़ने और शांति की अपील तो कर रहे हैं लेकिन उनके खुद के बयान ही कई बार हिंसा को बढ़ावा देने का काम करते हैं इसलिए दूसरों को सीख देने से पहले अमेरिकी नेताओं को अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए।