वर्ष 1973 के अरब तेल प्रतिबंध के 50 साल बाद पश्चिम एशिया में मौजूदा संकट से वैश्विक तेल आपूर्ति बाधित होने और कीमतें बढ़ने की आशंका है।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अत्यधिक मूल्य वृद्धि और गैस पंप पर लंबी कतारें लगने की आशंका नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के प्रमुख ने कहा कि सऊदी अरब और रूस से तेल उत्पादन में कटौती और चीन से मजबूत मांग के अनुमान के बाद अब इज़राइल-हमास युद्ध ‘‘निश्चित रूप तेल बाजारों के लिए अच्छी खबर नहीं’’ है।
पेरिस स्थित आईईए के कार्यकारी निदेशक फतिह बिरौल ने ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ को बताया कि बाजार अस्थिर रहेंगे और संघर्ष से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, ‘‘ जो निश्चित रूप से मुद्रास्फीति के लिए बुरी खबर है।’’
उन्होंने कहा कि तेल और अन्य ईंधन का आयात करने वाले विकासशील देश ऊंची कीमतों से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
हमास के आतंकवादियों के इज़राइल पर हमला करने के दिन यानी छह अक्टूबर को वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड 85 डॉलर प्रति बैरल था, जो बृहस्पतिवार को 91 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर कारोबार कर रहा था।
हमले के बाद से कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण तेल की कीमतें 96 डॉलर तक पहुंची हैं।
हमास के हमले में हजारों फलस्तीनी नागरिक मारे गए हैं।
तेल की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि इसका कितना इस्तेमाल हो रहा है और यह कितना उपलब्ध है।
गाजा पट्टी प्रमुख कच्चे तेल उत्पादन वाला क्षेत्र नहीं है, फिर भी हमास-इज़राइल संघर्ष के कारण इसकी उपलब्धता को लेकर कई चिंताएं हैं।
इस संघर्ष से दुनिया के कुछ सबसे बड़े तेल भंडारों वाले देश ईरान को लेकर भी चिंताएं हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इसका कच्चे तेल का उत्पादन बाधित हो गया है, लेकिन अब भी इसे चीन तथा अन्य देशों में भेजा जा रहा है।
लिपोव ऑयल एसोसिएट्स के अध्यक्ष एंड्रयू लिपोव ने कहा कि कीमतों के निरंतर बढ़ने से वास्तव में आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न होगा।
इज़राइल के सैन्य हमले से ईरानी तेल बुनियादी ढांचे को कोई भी नुकसान पहुंचने पर वैश्विक स्तर पर कीमतों में उछाल आ सकता है। ऐसा न होने पर भी ईरान के दक्षिण में स्थित होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने का भी तेल बाजार पर असर पड़ सकता है क्योंकि दुनिया की बहुत सारी आपूर्ति जलमार्ग से होती है।
लिपोव ने कहा कि जब तक ऐसा कुछ नहीं होता, ‘‘ तेल बाजार हर किसी की तरह पश्चिम एशिया की घटनाओं पर नजर रखेगा।