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यूरोप में राजनीतिक ध्रुवीकरण और राष्ट्रवाद की लहर देखी जा रही है। ऐसे में दुनिया के लिए बेहद अहम माना जा रहे यूरोपीय संसद के मतदान का आज आखिरी दिन है। मतदान के दौरान हिंसक घटनाएं भी हुईं और एक हमले में डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन भी चोटिल हुए हैं। 27 सदस्य देशों वाली यूरोपीय संसद के लिए 10वीं बार चुनाव हो रहे हैं। पहले यूरोपीय संसद के पास सिर्फ सुझाव देने का ही अधिकार था, लेकिन अब इसकी शक्तियां बढ़ गई हैं और अब यूरोपीय संसद सदस्य देशों की सरकारों के साथ मिलकर कानून भी बना सकती है।
यूरोपीय संसद में एक सदस्य देश के सांसदों की संख्या कितनी होगी, ये उस देश की जनसंख्या पर निर्भर करता है। साल 2020 में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद यूरोपीय संसद के सदस्यों की संख्या 751 से घटकर 705 रह गई है। संसद के चुनाव में यूक्रेन युद्ध सबसे बड़ा मुद्दा है और यूरोपीय देशों की सुरक्षा को लेकर चिंता उभरी है। यूरोपीय संसद के चुनाव में 18 साल से कम उम्र के लोगों को भी वोट देने का अधिकार होता है। कई यूरोपीय देशों में वोट देने की न्यूनतम उम्र 16 साल है तो कई देशों में यह 17 साल है। चुनाव के दौरान अर्थव्यवस्था, नौकरियों, गरीबी और सार्वजनिक स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे भी हावी रहे हैं।
यूरोपीय देशों के लोग अब राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर मुखर हैं और यूरोपीय राजनीति के मुद्दों में उनकी खास रुचि नहीं है। फ्रांस में नेशनल रैली पार्टी के नेता मरीन ले पेन को ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद है। बेल्जियम में आव्रजन विरोधी पार्टी व्लाम्स बेलांग को युवाओं का भरपूर समर्थन मिल रहा है। नीदरलैंड में लेफ्ट ग्रीन पार्टी बढ़त बनाए हुए हैं, लेकिन इस्लाम विरोधी पॉपुलिस्ट पार्टी को भी अच्छा समर्थन मिल रहा है। तो वहीं हंगरी में विक्टर ओर्बन को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और वहां भी दक्षिणपंथी पार्टी सिजा पार्टी का प्रभाव बढ़ रहा है।