ब्रिटेन में चुनाव की प्रक्रिया भारत से काफी अलग है। यहां के उम्मीदवार को पार्टी के अंदर समर्थन हासिल करना होता है। जनता के बीच जाकर भी मतदान की अपील करनी होती है। कई चरणों को पार करते हुए उम्मीदवार प्रधानमंत्री की गद्दी पर काबिज हो पाता है। अगर भारत और ब्रिटेन की तुलना करें तो दोनों देशों में पांच साल पर आम चुनाव होते हैं। यहां जनता पहले सांसद चुनने के लिए वोट देती है। फिर जिस पार्टी से ज्यादा सांसद हो उस पार्टी का प्रमुख नेता ही प्रधानमंत्री बनता है। लेकिन अगर बीच कार्यकाल में ही पीएम पद छोड़ना पड़े तो स्थिति अलग हो जाती है। जैसा की बीते दिनों हमें ब्रिटेन में लगातार देखने को मिला। कंजर्वेटिव 2010 से सत्ता में हैं, लेकिन विभिन्न विवादों के कारण पांच अलग-अलग प्रधानमंत्री बने हैं।
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पीएम पद के लिए कई उम्मीदवार
कैंडिडेट तय करने के लिए पार्टी के भीतर ही वोटिंग होती है। पार्टी के लोग अपना वोट देकर अपना नेता चुनते हैं। भारत में प्रधानमंत्री चुनने की प्रक्रिया में संसदीय प्रणाली का पालन किया जाता है। लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाले राजनीतिक दल का उम्मीदवार ही प्रधानमंत्री बनता है। इन्हें सांसद मिलकर अपना नेता घोषित करते हैं। जबकि ब्रिटेन का सिस्टम इससे काफी अलग है। यहां प्रधानमंत्री बनने के लिए सांसद ही नहीं बल्कि पार्टी कार्यकर्ता का भी समर्थन हासिल करना होता है। ब्रिटेन में पीएम पद के लिए कई उम्मीदवार होते हैं। सभी उम्मीदवारों को सांसद से लेकर कार्यकर्ता तक का समर्थन प्राप्त करना जरूरी होता है। सार्वधिक मत प्राप्त करने वाला ही ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन पाता है।
कंजर्वेटिव पार्टी
ब्रिटेन में दो बड़ी पार्टियां कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी है। दोनों पार्टियों में नेता के चुनाव के लिए नियम कुछ अलग होते हैं। ब्रिटेन में फिलहाल कंजर्वेटिव पार्टी का शासन है। कंजर्वेटिव पार्टी में प्रधानमंत्री को चुनने की प्रक्रिया तीन चरणों नॉमिनेशन, एलिमिनेशन और फाइनल प्रोसेस के जरिए होती है। पहली वोटिंग नामांकन करने वाले उम्मीदवारों के लिए होत है। वोटिंग के बाद नामिनेशन से जो नाम कम मतों की वजह से एलिमिनेट हो जाते हैं और फिर बाकी शेष कैंडिडेट जनता के बीच जाकर मतों के लिए अपील करनी होती है। वोटिंग में सांसदों के अलावा पार्टी के कार्यकर्ता पोस्टल बैलेट के जरिए वोट डालते हैं।
लेबर पार्टी
लेबर पार्टी में कम से कम 10 फीसदी सांसदों के नोमिनेट किए गए नेता उम्मीदवारी के लिए दावा कर सकते हैं। कार्यकर्ता वोट देते समय वरीयता क्रम बता देते हैं। जैसे वे पहली वरीयता किस दे रहे, फिर दूसरी, तीसरी और चौथी वगैरह। काउंटिंग में जो पहले 50 फीसदी वोट हासिल कर ले वही विजेता होता है। पहले राउंड में तय नहीं हो पाए तो सबसे कम वोट पाने वाले को रेस से बाहर कर देते हैं और फिर उन्हें पसंद करने वाले सदस्यों के वोट को उनकी पहली वरीयता के आधार पर ट्रांसफर कर देते हैं। इस तरह यह प्रक्रिया चलती रहती है और सदस्यों का एलिमिनेशन होता चला जाता है। ऐसा तब तक जारी रहता है, जब तक कोई एक कैंडिडेट 50 फीसदी वोट का आंकड़ा पार न कर ले।
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कौन कौन कर सकता है नामांकन
संसदीय सीट पर आधारित सिस्टम है। हर सीट पर 60 हजार मतदाता होते हैं। ब्रिटेन में कुल 650 सीटे हैं। मोटे तौर पर जिस पार्टी को सर्वाधिक सीटें मिलती है वो जीत जाती है। उम्मीदवार होने के लिए कम से कम 18 साल की उम्र, ब्रिटिश, आयरिश या राष्ट्रमंडल नागरिकता जरूरी है। उम्मीदवार अभिजात वर्ग का व्यक्ति, पागल, कैदी नहीं होना चाहिए। ब्रितानी चुनाव प्रक्रिया छोटी होती है। कानून ये 25 दिन से ज्यादा नहीं हो सकती। चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आम तौर पर दो मुख्य दलों में किसी एक को बहुमत हासिल हो जाता है और उसका नेता प्रधानमंत्री बन जाता है। लेकिन 2010 चुनाव में त्रिशंकु संसद चुनी गई। इसका मतलब की कोई भी पार्टी 326 सीट के बहुमत तक नहीं पहुंच सकी। चुनाव के बाद ब्रिटिश किंग किसी दल के नेता को प्रधानमंत्री बनने के लिए बुलाएंगे।