आस्था और कूटनीति ये दो ऐसी चीजे हैं जिसे जोड़कर देखना कतई आसान नहीं है। एक की जड़ें संस्कृति और विश्वास से जुड़ी हैं। दूसरा तर्क और गणना पर आधारित है। भारत इस कॉकटेल को परिपूर्ण करने की कोशिश कर रहा है, सवाल है कैसै? बौद्ध धर्म के साथ अपने प्राचीन संबंधों का उपयोग करके। नई दिल्ली ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण इवेंट ग्लोबल बुद्धिस्ट समिट की मेजबानी की है। 30 विदेशी एबेंसडर, 171 फॉरेन डेलीगेट्स और 150 भारतीय बुद्धिस्ट ऑर्गनाइजेनशन का इस समारोह में जुटान हुआ। लेकिन ये केवल बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए नहीं क्योंकि ये सब तो सभी को पता है। वर्तमान की चुनौतियों के साथ इसे जोड़ने की कोशिश की गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन के पहले दिन अपना संबोधन भी दिया। मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि दुनिया युद्ध, आर्थिक अस्थिरता, आतंकवाद, धार्मिक अतिवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से जूझ रही है और भगवान बुद्ध के विचार इन समस्याओं का समाधान पेश करते हैं।
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सम्मेलन के अगले दिन तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन में भाग लिया। चीन इस कदम से बुरी तरह से बौखला उठा होगा। और दो दिवसीय कार्यक्रम के लिए यहां एकत्र हुए भिक्षुओं और अन्य प्रतिनिधियों के एक समूह को संबोधित किया। उन्होंने लगभग आधे घंटे तक भाषण दिया और बौद्ध दर्शन और मूल्यों पर जोर दिया। अपने करीब आधा घंटे के संबोधन में तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने करुणा, ज्ञान और ध्यान पर बात की। उन्होंने कहा कि ये तीन मूल्य भगवान बुद्ध की शिक्षाओं एवं उनके दर्शन के अभिन्न अंग हैं।
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साल 2011 में दलाई लामा ने इसी तरह नई दिल्ली में सम्मेलन में हिस्सा लिया था। जिसके बाद बौखलाहट में चीन ने भारत के साथ सीमा वार्ता रद्द कर दिया था। अब ऐसे में दलाई लामा के बौद्ध सम्मेलन में शामिल होने और अपना वकतव्य देने के बाद चीन क्या कदम उठाता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।