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1987 में क्या हुआ था ऐसा, 36 साल बाद फिजी के प्रधानमंत्री ने मांगी भारतीयों से माफी

भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग (FIPIC) शिखर सम्मेलन के तीसरे फोरम से पहले फिजी के प्रधानमंत्री सीतवेनी राबुका ने देश में 1987 के तख्तापलट में अपनी भूमिका के लिए माफी मांगी है। 1987 में तख्तापलट के बाद देश के पहले भारतीय प्रधानमंत्री तिमोसी बावद्र की एक चुनावी सरकार को उखाड़ फेंका गया था। तख्तापलट ने देश से भारतीय मूल के फिजियों का पलायन शुरू कर दियाा था। अब तीन दशक बाद उन्होंने कबूल किया कि उनके कार्यों से बहुत से लोग आहत हुए हैं, विशेष रूप से इंडो-फिजी समुदाय के लोग। 

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तख्तापलट ने न केवल देश से हजारों भारतीयों को विस्थापित किया था बल्कि दशकों पहले द्विपक्षीय संबंधों को भी तनावपूर्ण बना दिया था। 14 मई की घटना के साल पूरे होने पर उन्होंने कहा कि हम उन लोगों को दोष नहीं देते जो हमसे नाराज हैं या फिर नफरत करते हैं। मैं यहां अपनी गलती मानता हूं और लोगों से माफी की गुजारिश करता हूं। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा कि मैं यह स्वीकारोक्ति अपनी ओर से और उन सभी की ओर से करता हूं जिन्होंने 14 मई, 1987 को सैन्य तख्तापलट में मेरे साथ भाग लिया था। हम अपने गलत कामों को स्वीकार करते हैं, और हम स्वीकार करते हैं कि हमने फिजी में हमारे बहुत से लोगों को चोट पहुंचाई है। , विशेष रूप से इंडो-फिजियन समुदाय के लोगों को। 

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1987 में क्या हुआ था?
भारत के सुदूर पूर्व में प्रशांत महासागर में स्थित फिजी 1874 में ब्रिटेन की कॉलोनी बना था। 1879 से 1916 के बीच वहां भारत से 60 हजार से ज्यादा लोग गन्ने के खेतों में काम करने के लिए लाए गए थे। 1916 में ब्रिटेन की सरकार ने भारत से लोगों को लाना बंद किया और 1920 में मजदूरों के साथ इंडेन्चर्ड लेबर एग्रीमेंट को खत्म कर दिया गया। 1970 में फिजी आजाद हुआ औऱ रातू सर कामिसी मारा पहले प्रधानमंत्री बने। 1987 में भारतीय मूल के लोगों के प्रभुत्व वाली सरकार सत्ता में आई। उस दौर में भारतीय मूल के लोग यानी फिजी इंडियन्स की आबादी वहां की मूल लोगों की आबादी से भी अधिक हुआ करती थी। उसी वक्त लेफ्टिनेंट कर्नल सितिवेनी राबुका ने बिना खून खराबे वाले एक तख्तापलट से सत्ता पर कब्जा जमा लिया। इस दौरान बड़ी संख्या में फिजी में भारतीयों का पलायन हुआ। 

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