ये 18वीं सदी के शुरुआत की बात है। उस समय मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन अपने आखिरी दौर में था। औरंगजेब ने गैर मुस्लिमों पर जजिया टैक्स लगाया था। इससे बचने के लिए बहुत सारे लोगों ने इस्लाम कबूल किया। ऐसे ही लोगों में शहतो खान भी शामिल थे। उनका परिवार राजस्थान से आकर सिंध में बस गया था। इसी वंश में आगे चलकर 1888 में शहनवाज भुट्टो का जन्म हुआ। 1927 में सखी बाई से मुलाकात के बाद 37 साल के शहनवाज ने पहले तो उनका धर्म परिवर्तन करवाया। इस्लाम कबूल कर कुर्शीद बेगम बनीं सखी बाई से शहनवाज ने शादी की और इन्ही की तीसरी संतान जुल्फिकार अली भुट्टो थे। पाकिस्तान की राजनीति में भुट्टो परिवार का जितना प्रभाव रहा, दुनिया के किसी भी देश में वैसी मिसाल शायद ही मिले।
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भारत विरोध का रहा है इतिहास
पाकिस्तान को दो प्रधानमंत्री और एक राष्ट्रपति देने वाले भुट्टो परिवार की कहानी रोमांच से सराबोर है। इस वंश की नई पीढ़ी का मुस्कबलि इमरान सरकार के जाने और शहबाज शरीफ के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में एक बार फिर से बुलंद होता नजर आया। जुल्फिकार अली भुट्टो के नाती और बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो पाकिस्तान के विदेश मंत्री हैं। बिलावल भुट्टो फिलहाल एससीओ समिट में शामिल होने के लिए भारत में मौजूद हैं। भुट्टो परिवार का इतिहास ही भारत विरोध का रहा है। जुल्फिकार अली भुट्टो की पूरी की पूरी राजनीति खुद को कट्टर भारत विरोधी साबित करने पर केंद्रित रही। वैसे ये भी दिलचस्प है कि उनकी बेटी बेनजरी भुट्टो इंदिरा गांघी को अपना आदर्श मानती थी। ऐसे में आइए जानते हैं कि बिलावल भुट्टो के परिवार का भारत से कैसा और क्या रिश्ता रहा है।
पाकिस्तान को दी तीन बड़ी सौगात
1928 में जुल्फिकार का जन्म हुआ। जुल्फिकार को पढ़ने के लिए बॉ़म्बे कैथेडरल स्कूल भेजा गया। बंटवारे के बाद भुट्टो परिवार पाकिस्तान में जाकर बस गया। जुल्फिकार अली भुट्टो ने मुल्क को तीन बड़ी सौगात संविधान, बैलेट बॉक्स और न्यूक्लियर प्रोग्राम दिया। पीपीपी यानी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी जिसका गठन जुल्फिकार अली भुट्टो ने किया था। वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रहे। उनके बाद कुछ अंतराल के बाद उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो ने पीएम की कुर्सी संभाली। फिर बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी भी राष्ट्रपति रहे। इस कड़ी में अगला नाम बेनजरी के बेटे बिलावल का आता है।
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घास खाकर भी बनाएंगे परमाणु बम
जुल्फिकार अली को जम्मू कश्मीर में घुसपैठ कराने का आरोप लगा था जिसे ऑपरेशन जिब्राल्टर के नाम से जाना जाता था। साल 1971 के युद्ध में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में अपना एक हिस्सा गंवाने के बाद सत्ता संभालने वाले पाकिस्तान के वजीर-ए-आला जुल्फिकार अली भुट्टो ने एक वक्त में ये ऐलान किया था कि भारत से 100 साल जंग लड़ेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि घास फूस खाकर भी भारत के खिलाफ पाकिस्तान परमाणु बम जरूर बनाएगा। जुल्फिकार अली भुट्टो का शासन 1977 तक चला। फिर उनके करीबी जनरल जिया उल हक ने उन्हें धोखा देकर गद्दी से उतारकर कत्ल का एक पुराना मुकदमा चलाया। अप्रैल 1979 में उन्हें चुपके से फांसी पर चढ़ा दिया गया। भुट्टो के आखिरी शब्द थे, ‘या खुदा, मुझे माफ करना मैं बेकसूर हूं।
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इंदिरा को आदर्श मानती था बेनजीर
जुल्फिकार की बेटी और पत्नी को नजरबंद करके रखा गया। फिर निर्वासन में लंदन भेज दिया गया। जुल्फिकार का एक बेटा शहनवाज लंदन में पढ़ाई कर रहा था। पिता की मौत के बाद उसने अपने बड़़े भाई के साथ अल जुल्फिकार नाम का एक उग्रवादी संगठन बनाया। जिसका मकसद जिया सरकार को उखाड़ना था। लेकिन जुलाई 1985 में फ्रांस के एक अपार्टमेंट में शहनवाज की लाश मिलती है। दावा किया गया कि उसे जरह दे दिया गया। उधर 1986 में बेनजीर की पाकिस्तान में वापसी होती है। अंतरराष्ट्रीय दबाव में जिया उल हक ने देश में चुनाव कराने का ऐलान किया। बेनजीर चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनी। उस समय भारत में भी एक नौजवान की पीएम के रूप में एंट्री हुई थी। राजीव गांधी ने अपनी मां की हत्या के बाद भारी बहुमत से चुनाव जीता था। जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी और बिलावल भुट्टो की मां बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रही हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार बेनजीर तीन लोगों को अपना आदर्श मानती थीं। अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो, फ्रांस की वीरांगना जोन ऑफ आर्क और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी।