अमेरिकी कैपटॉल हिल दंगे और ब्राजील में हिंसक आंदोलन जैसी घटनाएं दिखाती हैं कि कैसे तेजी से फैलने वाली भ्रामक सूचनाएं लोकतंत्र को कमजोर कर सकती हैं।
ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो के समर्थकों ने जब देश की कांग्रेस (संसद) पर धावा बोला तो इसकी तुलना वर्ष 2021 में अमेरिकी कैपिटल (संसद) बिल्डिंग दंगे से की गई। अमेरिका में हुए हमले की तरह घुसपैठिए अपदस्थ दक्षिणपंथी राष्ट्रपति के नाम पर चरमपंथियों की तरह कार्य कर रहे थे और दोनों ही मामलों में भ्रामक सूचना के साथ चुनाव के बाद बगावत की स्थिति उत्पन्न हुई।
बोलने की आजादी को दबाए बिना भ्रामक सूचनाओं को रोकना दुनिया भर की सरकारों के लिए बड़ा सिर दर्द है। ऑस्ट्रेलिया ने भ्रामक सूचना संहिता को अद्यतन किया लेकिन अब तक उसके दायरे में सभी मैसेजिंग सेवाएं नहीं है जबकि तुर्किये का नया कानून पत्रकारों की नजर में ‘‘सोशल मीडिया का सूक्ष्म प्रबंधन और उसे कुचलना है।’’
अगर कोई उम्मीद थी कि सोशल मीडिया मंच वे कदम उठाएंगी जो सरकारों नहीं उठा सकती, तो हाल के घटनाक्रम हतोत्साहित करने वाले ही हैं।
भ्रामक सूचनाओं को सीमित करने की बात आई तो फेसबुक के स्वामित्व वाली कंपनी मेटा ने भारी कमाई के बाद नौकरियों में छंटनी कर दी और हो सकता है कि वह समाचार के क्षेत्र से ही पीछे हट जाए। टिकटॉक भ्रामक सूचनाओं से भरा हुआ है और ट्विटर का स्वामित्व एलन मस्क के हाथों में जाने के बाद शायद ही कोई दिन बचा है जब वह सुर्खियों में न रहे हों।
क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में डिजिटल संप्रेषण के प्रोफेसर डेनियल एंगस का कहना है कि मस्क के नेतृत्व में ट्विटर सच्ची और भ्रामक सूचनाओं के बीच संतुलन में पिछड़ गया है।
एंगस ने कहा, ‘‘उन्होंने (मस्क ने) सोशल मीडिया मंच के ऑनलाइन सुरक्षा प्रकोष्ठ को खत्म कर दिया जिसका नतीजा है कि भ्रामक सूचनाएं एक बार फिर बढ़ गई हैं।’’उन्होंने कहा, ‘‘(मस्क) प्रौद्योगिकी समस्या को अपनी समस्या के समाधान की तरह देखते हैं। उन्होंने पहले ही संकेत दे दिया है कि वह ट्विटर की सामग्री पर निगरानी के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के इस्तेमाल को बढ़ाएंगे। लेकिन यह न तो टिकने वाला है और न ही इसका बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके रामबाण समाधान साबित होने की संभावना नहीं है।’’
विशेषज्ञों ने रेखांकित किया कि कोई एक अरबपति भ्रामक सूचना की समस्या से निपट नहीं सकता और इसके लिए बहु प्रयास की जरूरत है जिसमें सरकार, कारोबार, नागरिक समाज कार्यकर्ताओं और ग्राहकों की भागीदारी हो।
भ्रामक सूचना एजेंट अकसर विज्ञापन स्थान खरीदकर नुकसान कर करते हैं ताकि भ्रामक सूचना सामग्री प्रसारित की जा सके। प्रकाशक जिन विज्ञापनों की मेजबानी कर रहा है उसे यह तो पता नहीं होगा (क्योंकि स्वचालित प्रक्रिया होती है) या वह ध्यान नहीं देता (क्योंकि अधिक देखे जाने पर उसे धन मिलता है), ऐसे में इसके समाधान के लिए अलग सोच की जरूरत है।
गैर लाभकारी संस्था वैश्विक भ्रामक सूचना सूचकांक का उद्देश्य आंकड़ों को संकलित करना है ताकि विज्ञापनदाताओं को सूचित किया जा सके कि कहां पर वे अपने ब्रांड को प्रदर्शित करें। उसने पाया कि यह वैध ब्रांड के साथ संबंध बनाने में प्रभावी हैं जिनके उत्पाद भ्रामक सूचना के साथ दिख रहे हैं।
सह संस्थापक और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के अनुबंधित सहायक प्राध्यापक डेनियल जे रोजर ने कहा, ‘‘ विज्ञापनदातओं के ब्रांड अनपयुक्त सामग्री के साथ दिखते हैं जो उनकी प्रतिष्ठा को उनके द्वारा इस्तेमाल धन को नुकसान पहुंचाते हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रवक्ता अन्या श्रिफरीन ने कहा कि जब भ्रामक सूचना फैलती है तो उसे फैलने देने से बेहतर है कि उक्त सूचना को ठीक कर दिया जाए।
उन्होंने कहा कि गलत सूचनाओं का उसके फैलने से पहले पता लगाना अहम है।
श्रिफरीन ने कहा,‘‘सुधार भी समस्या को बढ़ा सकता है, पहुंच के प्रभाव की वजह से दर्शक किसी चीज को दोबारा देखते हैं तो उसपर अधिक भरोसा करने लगते हैं और सही करने पर मीडिया में अविश्वास बढ़ सकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘तथ्यों की जांच करने हेतु अधिक इकाइयों की स्थापना से भी सच्चाई की संस्कृति बन सकती है और उसे समर्थन मिल सकता है।
सच्चाई के लिए वैश्विक मानक बनाने से विज्ञापनदाताओं को यह फैसला लेने में मदद मिल सकती है कि वे किसे समर्थन करें और इससे मीडिया के प्रति विश्वास भी बहाल हो सकता है।’’
नागरिकों की मीडिया साक्षरता सुनिश्चित करके मजबूत सुरक्षा व्यवस्था बनाई जा सकती है जिससे नुकसान को सीमित किया जा सकता है। इनमें बड़े पैमाने पर सरकारी कार्यक्रम बनाए जा सकते हैं जो समाचार श्रोताओं में तथ्यों की निष्पक्ष जांच करने का गुण विकसित कर सकें और विश्वसनीय तथ्यों का पता लगाने में मदद कर सकें।