काश, पाकिस्तान में भी भारत जैसे सैन्य अधिकारी होते। 1971 में युद्ध में बंदी बने 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों में से ज्यादातर लोगों का ये कहना था। इन पाकिस्तानी सैनिकों और अफसरों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था। इन सैनिकों को सेना की मध्य कमान की निगरानी में रखा गया था और इसके कमांडिग ऑफीसर (सीओ) लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत थे। लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत की स्मृति व्याख्यानमाला में बोलेत हुए 52 वर्ष पूर्व हुए युद्ध के बाद की स्थितियों के बारे में भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने बात की। जरनल मनोज पांडे ने साल 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध का जिक्र किया।
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1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बारे में बोलते हुए भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय सेना द्वारा पाक कैदियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी कैदियों ने भारत में उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार की केवल प्रशंसा की और अक्सर टिप्पणी की कि वे चाहते हैं कि उनके अपने अधिकारी भारतीय अधिकारियों की तरह हों।
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उन्होंने कहा कि 1971 में भारत पाकिस्तान की जंग के बाद 90- हजार युद्ध बंधक सेंट्रल कमांड के कैप्स में रका जाना था। इसके लिए फौरी तौर पर शेल्टर्स के निर्माण की जरूरत थी। मूलभूत जरूरतों को यथास्थान मुहैया करवाने की आवश्यकता थी। सुरक्षा जरूरतों को लेकर आश्वस्त करने की जरूरत थी। इन सबमें एक सामंजस्य की जरूरत थी। जनरल भगत ने ये सुनिश्चित किया कि युद्ध बंधकों को आधिकारिक तौर पर जो कुछ भी मिलना चाहिए, मसलन कैंटीन, पोस्टल सेवा और मेडिकल कवर उनके लिए उसी रूप में उपलब्ध हो, जैसे जेनेवा कंवेंशन में है।