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2 बोतल दूध, 1 बोतल तेल खरीदने की इजाजत, आर्थिक संकट का सामना कर रहे इस देश में मस्जिदों को लेकर क्यों उठ रहे सवाल?

मिस्त्र की राजधानी काहिरा के अल-कुब्बाह जिले में अपनी बालकनी में खड़े होकर 20 साल के युवक महमूद अब्दो कम से कम पांच अलग-अलग मस्जिदों से अजान की आवाज सुन सकते हैं। मिस्र की विकट आर्थिक स्थिति के बीच अब्दो को यकीन नहीं है कि इन सभी धार्मिक केंद्रों पर अत्यधिक खर्च आवश्यक है? इस बाबत उन्होंने विदेशी समाचार पोर्टल अल-मॉनिटर से बात करते हुए कहा, “हम अतीत में लोगों को यह कहते सुना करते थे कि (गरीब) परिवारों के लिए आवश्यक धन को मस्जिदों पर खर्च नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय, अधिकांश मस्जिदों में मस्जिद के विकास या अन्य धर्मार्थ कार्यों के लिए चंदा लेने के लिए बक्से होंगे। हालांकि, पिछले साल नवंबर में मिस्र के धार्मिक बंदोबस्ती मंत्रालय ने दान पेटियों वाले सिस्टम को हटा दिया। इसके बजाय यह निर्धारित किया कि बैंक हस्तांतरण के माध्यम से सीधे मस्जिदों के खातों में दान किया जाना चाहिए। सितंबर 2020 में, मिस्र के बंदोबस्ती मंत्री मोहम्मद मुख्तार गोमा ने एक टेलीविज़न साक्षात्कार में खुलासा किया कि मिस्र भर में मस्जिदों की संख्या 140,000 से अधिक हो गई थी, जिसमें 100,000 बड़ी मस्जिदें शामिल थीं।

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आपको बता दें कि आर्थिक संकट का सामना कर रहे मिस्र में महंगाई इन दिनों चरम पर है। मिस्र में खाने का सामान इतना महंगा हो गया है कि लोगों को केवल तीन बोरी चावल, दो बोतल दूध और एक बोतल तेल खरीदने की इजाजत है। आर्थिक संकट और मूलभूत सुविधाओं के आभाव के बीच मिस्र के धार्मिक मंत्रालय की तरफ से शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतों के परे राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल सिसी के कार्यकाल में हजारों नए मस्जिदों का निर्माण करवाया है। पिछले महीने, धार्मिक बंदोबस्ती मंत्रालय ने घोषणा की कि 2013 में राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी के पद संभालने के बाद से 10.2 बिलियन मिस्र पाउंड (लगभग 404 मिलियन डॉलर) की लागत से 9,600 मस्जिदों का निर्माण या नवीनीकरण किया गया है। सरकार के इस फैसले पर लोग सवाल उठा रहे हैं। मिस्र सरकार द्वारा संचालित सेंट्रल एजेंसी फॉर पब्लिक मोबिलाइजेशन एंड स्टैटिस्टिक्स के अनुसार देश में महंगाई दर नवंबर 2021 की तुलना में नवंबर 2022 में 6.2% हो गई थी। 

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काहिरा के मादी जिले के 60 वर्षीय मोहम्मद अली अपने पड़ोस में मस्जिदों की बड़ी संख्या के बावजूद पांच दैनिक प्रार्थनाओं के लिए मस्जिद जाने वालों की कमी से निराश हैं। मध्य पूर्व देशों को कवर करने वाले समाचार पोर्टल अल-मॉनिटर से बात करते हुए वो कहते हैं कि मेरे क्षेत्र की मस्जिदें आमतौर पर केवल शुक्रवार की नमाज़ और रमज़ान के महीने में ही भरी रहती हैं। लेकिन बाकी समय, मस्जिदों में नमाज़ में शामिल होने वाले लोगों की संख्या बहुत कम होती है। अली ने कहा कि वह चाहते हैं कि मस्जिदें उपासकों से भरी हों, विशेष रूप से आवासीय क्षेत्रों में मस्जिदों की उच्च संख्या को देखते हुए और अधिक मस्जिदों के निर्माण के महत्व पर बल दिया। 

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