Prabhasakshi Exclusive: China के खिलाफ India के साथ क्यों खड़े हो गये Philippines, Malaysia, Vietnam और Taiwan, Nepal को भी क्यों नहीं भा रहा China Map?
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि चीन की ओर से नया मानचित्र जारी किये जाने को आप कैसे देखते हैं? हमने जानना चाहा कि चीन की इस हरकत का भारत को क्या जवाब देना चाहिए? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि भारत ने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के मानचित्र में दिखाए जाने के संबंध में पड़ोसी देश के दावों को ‘आधारहीन’ बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया और कहा है कि चीनी पक्ष के ऐसे कदम सीमा से जुड़े विषय को केवल जटिल ही बनाएंगे। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीन को समझना होगा कि सिर्फ बेतुके दावे करने से अन्य लोगों के क्षेत्र आपके नहीं हो जाते। उन्होंने कहा कि चीन की ओर से मनोवैज्ञानिक आधार पर दबाव बनाना कोई नयी बात नहीं है। इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। इसलिए भारत के कुछ क्षेत्रों पर अपना दावा करने वाला मानचित्र पेश करने से मुझे लगता है कि इससे कुछ नहीं बदलता। ये भारत का हिस्सा हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन की ऐसी हरकतों को ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है हालांकि भारत को उच्च स्तर की सतर्कता सदैव बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन को जब भी नया बखेड़ा शुरू करना होता है तब वह चार हजार साल पुराना मानचित्र निकालता है और उसमें संशोधन कर उसे जारी कर देता है लेकिन अब पूरी दुनिया उसका खेल समझ चुकी है इसीलिए उसके खिलाफ विश्वव्यापी माहौल बन रहा है। उन्होंने कहा कि जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीनी संविधान में बदलाव कर खुद को आजीवन राष्ट्रपति घोषित किया है तबसे उनकी महत्वाकांक्षा और बढ़ गयी है और वह दुनिया पर राज करने का जो सपना देख रहे हैं वह कभी पूरा नहीं हो पायेगा। उन्होंने कहा कि चीन यदि इस तरह के मानचित्र जारी कर रहा है तो हमें भी कैलाश मानसरोवर समेत उन क्षेत्रों को भारतीय नक्शे में दिखाना चाहिए जो ऐतिहासिक रूप से भारत के पास रहे थे।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हैरत इस बात पर हो रही है कि एक ओर ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान 24 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अनौपचारिक बातचीत की लेकिन दूसरी ओर चार दिन बाद चीन ने नया मानचित्र जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि चीन यदि संबंधों को सुधारना चाहता तो इस धृष्टता से बच सकता था। उन्होंने कहा कि चीन के इस कदम से दुनिया के समक्ष एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि चीन कहता कुछ है और करता कुछ है। उन्होंने कहा कि चीन ने अपने मानचित्र में भारत के अलावा और जिन देशों के भूभाग को अपना बताया है वह भी विरोध पर उतर आये हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत के साथ-साथ फिलीपीन, मलेशिया, वियतनाम और ताइवान की सरकारों ने चीन के नए राष्ट्रीय मानचित्र को खारिज कर दिया और कड़े शब्दों में बयान जारी कर आरोप लगाया है कि बीजिंग उनके क्षेत्रों पर अपना दावा कर रहा है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो चीन के खिलाफ एक साथ जिस तरह कई देश भारत के साथ खड़े हुए हैं उससे ड्रैगन के मन में भय का वातावरण अवश्य बना होगा। उन्होंने कहा कि फिलीपीन सरकार ने चीन के तथाकथित ‘मानक मानचित्र’ के 2023 संस्करण की आलोचना की है। उन्होंने बताया कि फिलीपीन के विदेश मामलों की प्रवक्ता मा तेरेसिता दाजा ने एक बयान में कहा है कि समुद्री क्षेत्रों पर चीन की कथित संप्रभुता और अधिकार क्षेत्र को वैध बनाने के इस नवीनतम प्रयास का अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से 1982 की समुद्र कानून संबंधी संयुक्त राष्ट्र संधि (यूएनसीएलओएस) के तहत कोई आधार नहीं है। दाजा ने कहा कि 2016 के ‘‘आर्बिट्रल अवार्ड’’ ने पहले ही सीमांकन को अमान्य कर दिया है और चीन से यूएनसीएलओएस के तहत अपने दायित्वों का पालन करने का आह्वान किया है। फिलीपीन ने पहले ही 2013 में चीन के राष्ट्रीय मानचित्र के प्रकाशन का विरोध किया था, जिसमें कलायान द्वीप समूह या स्प्रैटलीज़ के कुछ हिस्सों को चीन की ‘राष्ट्रीय सीमा’ के भीतर रखा गया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा मलेशियाई सरकार ने कहा है कि वह दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों पर एक विरोध नोट भेजेगी, जैसा कि ‘चीन मानक मानचित्र संस्करण 2023’ में उल्लिखित है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि मलेशिया दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों को मान्यता नहीं देता है, जैसा कि चीन के मानक मानचित्र के ताजा संस्करण में बताया गया है और उसमें मलेशिया के समुद्री क्षेत्र को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा, चीन के उकसावे वाली इस ताजा कार्रवाई की वियतनाम ने भी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि वियतनामी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता फाम थू हैंग ने कहा है कि वियतनाम होआंग सा (पैरासेल) और ट्रूओंग सा (स्प्रैटली) द्वीपों पर अपनी संप्रभुता को दृढ़ता से दोहराता है, और चीन के किसी भी समुद्री दावे को दृढ़ता से खारिज करता है। उधर, ताइवान के विदेश मंत्रालय ने भी चीन के नए ‘मानक मानचित्र’ की आलोचना करते हुए कहा कि ताइवान पर कभी भी चीन का शासन नहीं रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर नेपाल से सामने आया मामला भी बड़ा रोचक है क्योंकि काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी के मेयर बालेंद्र शाह ने नेपाल के नए राजनीतिक मानचित्र को स्वीकार करने में चीन की विफलता पर वहां की अपनी पूर्व निर्धारित यात्रा रद्द कर दी है। उन्होंने बताया कि बालेंद्र शाह को चीन में आयोजित एक सांस्कृतिक उत्सव के समापन समारोह में भाग लेने के लिए वहां जाना था। सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में, मेयर शाह ने कहा कि उन्होंने चीन द्वारा सोमवार को एक नया नक्शा जारी किए जाने की पृष्ठभूमि में अपनी यात्रा रद्द कर दी है क्योंकि चीन के नये नक्शे में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख क्षेत्रों को भारत के हिस्से के रूप में दिखाया गया है जबकि नेपाल इन्हें अपना हिस्सा मानता है। काठमांडू के मेयर ने कहा कि नेपाल से पूछे बिना नेपाली क्षेत्र को भारत का बताने को हम अपनी संवेदनशीलता के खिलाफ एक गलत कदम मानते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि काठमांडू द्वारा 2020 में एक नया राजनीतिक मानचित्र प्रकाशित किए जाने के बाद भारत और नेपाल के बीच संबंधों में तनाव आ गया था, जिसमें तीन भारतीय क्षेत्रों- लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख- को नेपाल के हिस्से के रूप में दिखाया गया था। उसी साल, नेपाल की तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने देश के नए राजनीतिक मानचित्र को अद्यतन करने के लिए एक संविधान संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर किये थे जिसमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तीन भारतीय क्षेत्रों को शामिल किया गया। हालांकि भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे “एकतरफा कृत्य” बताया और काठमांडू को आगाह किया कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा “कृत्रिम विस्तार” उसे स्वीकार्य नहीं होगा।