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अदावत हुई दूर, अब दोस्ती होगी भरपूर, क्यों एक दूसरे के दुश्मन हो गए थे ईरान और सऊदी अरब, दो धड़ों में बंट गया था मिडल ईस्ट

करीब सात साल बाद दुनिया के दो सबसे बड़े शिया और सुन्नी देश अपनी दुश्मनी को भुलाकर औपचारिक रिश्तों की नई शुरुआत कर रहे हैं। पिछले महीने चीन द्वारा मध्यस्थता के बाद रियाद द्वारा अपने राजनयिक मिशनों को फिर से खोलने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए ईरानी प्रतिनिधिमंडल सऊदी अरब भी पहुंचा था। अब ईरान ने आधिकारिक तौर पर सऊदी अरब के किंग को देश का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया है। लेकिन  सऊदी अरब और ईरान किसी जमाने में एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हुआ करते थे। सऊदी अरब साम्राज्य और इस्लामी गणराज्य ईरान दशकों से एक-दूसरे के खिलाफ रहे हैं। उनके बीच दशकों पुराना झगड़ा धार्मिक मतभेदों से बढ़ा है। वे प्रत्येक इस्लाम की दो मुख्य शाखाओं में से एक का पालन करते हैं।ईरान बड़े पैमाने पर शिया मुस्लिम है, जबकि सऊदी अरब खुद को प्रमुख सुन्नी मुस्लिम शक्ति के रूप में देखता है। मध्य पूर्व के महान खेल में ईरान और अरब शक्तिशाली खिलाड़ी रहे हैं। पूरे क्षेत्र में फैले ईरान के फारसी साम्राज्यों का प्रभुत्व था। जबकि अरब अधिक विकेंद्रीकृत थे। धार्मिक विभाजन मध्य पूर्व के व्यापक मानचित्र में परिलक्षित होता है, जहाँ अन्य देशों में शिया या सुन्नी बहुमत हैं, जिनमें से कुछ समर्थन या मार्गदर्शन के लिए ईरान या सऊदी अरब की ओर देखते हैं। 
पैगंबर की गदीर की घोषणा
601 ई में पैगंबर मोहम्मद ने इस्लाम धर्म की शुरुआत की। 632 ई में पैगंबर मोहम्मद अपनी जिंदगी का आखिरी हज पूरा करके मक्का से मदीना जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने सभी हाजियों को गदीर के मैदान में रूकने का आदेश दिया। ये जगह जोहफा के पास थी, जहां से कई रास्ते निकलते थे। कहा जाता है कि इसी जगह पर पैगंबर साहब को अल्लाह ने संदेश भेजा। यह संदेश कुरआन में भी मौजूद है।  पैगंबर मोहम्मद साहब ने सभी हाजियों को ज़ोहफा से 3 किलोमीटर दूर गदीर नामक मैदान पर रुकने के आदेश दे दिए। मोहम्मद साहब ने उन लोगों को भी वापिस बुलवाया जो लोग आगे जा चुके थे और उन लोगों का भी इंतज़ार किया जो लोग पीछे रह गए थे। हदीसों के मुताबिक इसी मंच यानी कि मिम्बर से पैगंबर मोहम्मद साहब ने अपने दामाद हज़रत अली को गोद में उठाया और कहा कि ‘जिस जिसका मैं मौला हूं उस उस के ये अली मौला हैं। 
दो धड़ों में बंट गए मुसलमान और पड़ी शिया-सुन्नी के बीच दुश्मनी की नींव
पैगंबर मोहम्मद साहब अपने शहर पहुंचे और कुछ ही महीनों के बाद उनका निधन हो गया। मोहम्मद साहब के निधन के बाद मोहम्मद साहब की गद्दी पर उनका कौन वारिस बैठेगा इसी को लेकर दोनों ही समुदाय अलग-थलग पड़ गए। एक पक्ष का मानना था कि मोहम्मद साहब ने किसी को अपना वारिस नहीं बनाया है। इसलिए योग्य शख्स को चुना जाए। दूसरे पक्ष का मानना था कि पैगंबर मोहम्मद ने गदीर के मैदान में जो घोषणा की थी वो वारिस को लेकर ही थी। 
वक्त के साथ और गहरी होती गई खाई
1501 में पर्शिया (अब ईरान) में सफाविद वंश स्थापित हुआ। सफाविदों ने शिया इस्लाम को स्टेट रिलिजन घोषित कर दिया। पहली बार शिया मुस्लिम भी सत्ता में आए। सुन्नी खलीफाओं के ओटोमन साम्राज्य (केंद्र तुर्की) के साथ सफाविदों (केंद्र ईरान) की करीब 200 साल तक जंग चलती रही। 17वीं सदी तक इन वंशों का प्रभाव फीका पड़ने लगा, लेकिन इसका असर आज के भौगोलिक विस्तार में देखा जा सकता है। 1941 में शिया बहुल ईरान में शाह रजा पहलवी गद्दी पर बैठे। वो शिया इस्लाम को मानते थे, लेकिन उन पर अमेरिका का पिट्ठू होने के आरोप लगे। शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी ने भी उनका विरोध किया, जिसके बाद खोमेनी को निर्वासित कर दिया गया।1978 में करीब 20 लाख लोग शाह के खिलाफ प्रदर्शन करने शाहयाद चौक में जमा हुए। इसे ही इस्लामिक रिवॉल्यूशन कहा जाता है।
ईरान और सऊदी की दुश्मनी
2003 में अमेरिका ने ईरान के प्रमुख विरोधी इराक पर आक्रमण कर सद्दाम हुसैन की सत्ता को तहस नहस कर दिया। इससे यहां शिया बहुत सरकार के लिए रास्ता खुल गया और देश में ईरान का प्रभाव तब से तेजी से बढ़ा है। 2011 की स्थिति ये थी कि कई अरब देशों में विद्रोह के स्वर बढ़ रहे थे, जिसकी वजह से पूरे इलाके में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई। ईरान और सऊदी अरब ने इस उथल पुथल का फायदा उठाते हुए सीरिया, बहरीन और यमन में अपने प्रभाव का विस्तार किया। मध्य पूर्व दो धड़ों में भी बंटी नजर आया था। सुन्नी बहुल सऊदी अरब के समर्थन में यूएई, बहरीन, मिस्र और जॉर्डन जैसे खाड़ी देश खड़े हैं। वहीं ईरान के समर्थन में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद हैं जिन्हें सुन्नियों के ख़िलाफ़ हिजबुल्लाह सहित ईरानी शिया मिलिशिया समूहों का भरोसा है। 

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