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Vishwakhabram: रोजगार देने के नाम पर सत्ता में आये Donald Trump सरकारी कर्मचारियों की नौकरियां क्यों छीन रहे हैं?

अमेरिका में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन करने के नाम पर सत्ता में आये डोनाल्ड ट्रंप ने लोगों की नौकरियां छीनना शुरू कर दिया है। हम आपको बता दें कि अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने हजारों लोगों को बर्खास्त करना शुरू कर दिया है। रिपोर्टों के मुताबिक कई सरकारी एजेंसियों से कर्मचारियों को निकाल दिया गया है और कई को ईमेल के जरिये वह तारीख बता दी गयी है जोकि उनके कार्यकाल की अंतिम तिथि होगी। छंटनी के इस अभियान में ट्रंप प्रशासन किसी भी विभाग को नहीं छोड़ रहा है। ट्रंप प्रशासन का सबसे पहले निशाना उन कर्मचारियों पर है जिनकी नौकरी पक्की नहीं है।
बताया जा रहा है कि वयोवृद्ध मामलों के विभाग ने कहा है कि उसने 1,000 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है जबकि अमेरिकी वन सेवा ने 3,000 से अधिक लोगों को नौकरी से निकाल दिया है। इसके अलावा शिक्षा विभाग, लघु व्यवसाय प्रशासन, उपभोक्ता वित्तीय संरक्षण ब्यूरो और सामान्य सेवा प्रशासन, जैसे विभागों में कर्मचारियों को ईमेल भेज कर उनको नौकरी से निकाले जाने की सूचना दे दी गयी है। देखा जाये तो सरकारी नौकरियों से लोगों को निकाले जाने से पूरे अमेरिका में हड़कंप की स्थिति है लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि संघीय सरकार का बहुत सारा पैसा धोखाधड़ी में बर्बाद हो गया है। संघीय सरकार पर करीब 36 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है और पिछले साल उसे 1.8 ट्रिलियन डॉलर का घाटा हुआ था। ट्रंप का कहना है कि सरकारी सुधार की आवश्यकता पर द्विदलीय सहमति है।

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हम आपको बता दें कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 280000 सरकारी कर्मचारियों को दो साल से भी कम समय पहले काम पर रखा गया था, जिनमें से अधिकांश अभी भी परिवीक्षा पर हैं, जिससे उन्हें बर्खास्त करना आसान हो जाता है। लेकिन ट्रंप जिस तरह ‘नौकरी छीनो’ अभियान आगे बढ़ा रहे हैं उससे ऐसा प्रतीत होता है कि बर्खास्तगी का अभियान परिवीक्षाधीन कर्मचारियों से आगे बढ़ रहा है। बताया जा रहा है कि टर्म कर्मचारियों के अलावा पूर्णकालिक कर्मचारियों को भी नोटिस भेजा जा रहा है।
यह भी बताया जा रहा है कि अमेरिकी सरकार की मानव संसाधन शाखा, कार्मिक प्रबंधन कार्यालय के सभी परिवीक्षाधीन कर्मचारियों को गुरुवार को एक ग्रुप कॉल करके निकाल दिया गया और वाशिंगटन में एजेंसी का मुख्यालय छोड़ने के लिए कहा गया। बताया जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों ने तमाम सरकारी एजेंसियों से मुलाकात कर उन्हें कुछ अपवादों को छोड़कर अपने ज्यादातर परिवीक्षाधीन कर्मचारियों को हटाने की सलाह दी है।
वैसे अमेरिकी कानून कहता है कि सिविल सेवा कर्मचारियों को केवल खराब प्रदर्शन या कदाचार के लिए कानूनी रूप से हटाया जा सकता है और यदि उन्हें मनमाने ढंग से हटाया जाता है तो उनके पास अपील के अधिकार हैं। हालांकि परिवीक्षाधीन कर्मचारियों के पास कम कानूनी सुरक्षा है। बताया जा रहा है कि विभिन्न सरकारी महकमों को भेजे गये पत्रों में परिवीक्षाधीनों को कहा गया है कि एजेंसी को लगता है कि आप निरंतर रोजगार के लिए उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि आपकी क्षमता, ज्ञान और कौशल वर्तमान जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं और आपका प्रदर्शन एजेंसी के साथ आगे के रोजगार को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसी क्रम में शिक्षा विभाग में हाल ही में नियुक्त किए गए 160 लोगों को पत्र भेज कर बताया गया है कि उनका निरंतर रोजगार “सार्वजनिक हित में नहीं होगा।” यहां यह बात भी काबिलेगौर है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने तो शिक्षा विभाग को ही बंद करने की अपनी इच्छा हाल में दोहराई थी। इस बीच, व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने संवाददाताओं को बताया है कि लगभग 75,000 कर्मचारियों ने बायआउट के लिए साइन अप किया है।
हम आपको बता दें कि राष्ट्रपति ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीका में जन्मे एलन मस्क और एक अस्थायी सरकारी एजेंसी DOGE में उनकी टीम को संघीय कार्यबल में बड़े पैमाने पर कटौती करने का काम सौंपा है। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति मस्क ने DOGE सदस्यों को कम से कम 16 सरकारी एजेंसियों में भेज कर बड़े पैमाने पर छंटनी कराई है। बताया जा रहा है कि DOGE में एक शीर्ष कर्मचारी गेविन क्लिगर IRS दफ्तर भी पहुंच चुके हैं। वैसे यह पहली बार था कि मस्क के किसी सहयोगी ने आईआरएस में प्रवेश किया है, जो लंबे समय से रिपब्लिकन का लक्ष्य रहा है। रिपब्लिकनों का दावा है कि बाइडन प्रशासन ने अनावश्यक ऑडिट के जरिये छोटे व्यवसायों और मध्यम वर्ग के अमेरिकियों को लक्षित करने के लिए इस एजेंसी को हथियार बनाया था।
बहरहाल, देखना होगा कि ट्रंप का यह अभियान अभी और कितने लोगों के रोजगार पर प्रभाव डालता है। वैसे ट्रंप कर्मचारियों को नौकरी से निकाल कर सरकारी खर्च तो कम कर लेंगे लेकिन बेरोजगारों की बढ़ती भीड़ से जो सामाजिक संकट खड़ा होगा उसका समाधान वह कैसे निकालेंगे इस पर सबकी नजरें टिकी हैं।

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