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Prabhasakshi Exclusive: Xi Jinping रूस होकर आ गये, इससे Vladimir Putin को क्या हासिल हुआ?

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने इस सप्ताह ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी से जानना चाहा कि चीन के राष्ट्रपति ने रूस की यात्रा की, जापान के प्रधानमंत्री भारत आये और फिर यूक्रेन पहुँचे। इन सब घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय राजनय की दृष्टि से क्या प्रभाव छोड़ा है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि रूस के राष्ट्रपति को इस यात्रा का बहुत समय से इंतजार था क्योंकि सभी नेता यूक्रेन जा रहे थे लेकिन कोई यात्रा के लिए रूस नहीं आ रहा था। वहीं जापान के प्रधानमंत्री का यूक्रेन जाना इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि जापान इस समय जी-7 का अध्यक्ष है। जी-7 के छह सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष यूक्रेन जा चुके थे लेकिन जापान के प्रधानमंत्री अब तक नहीं गये थे इसलिए उन पर एक दबाव भी था। उन्होंने कहा कि जहां तक रूस और चीन के बीच हुई वार्ताओं की बात है तो चीन का शांति प्रस्ताव तो खारिज होना ही था। उन्होंने कहा कि फिलहाल दोनों देशों में जो सहमति बनी है यदि उसकी बात करें तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का रूस दौरा इस मायने में महत्वपूर्ण रहा कि उन्होंने अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का मुकाबला करने के लिए अपने रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन के साथ ‘‘समान, खुली और समावेशी सुरक्षा प्रणाली’’ बनाने का संकल्प किया है।
ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि शी ने पुतिन के साथ गहन चर्चा की, जिसके बाद दोनों नेताओं ने ”नए युग के लिए समन्वय की व्यापक रणनीतिक साझेदारी’’ और ‘‘चीन-रूस आर्थिक सहयोग में प्राथमिकताओं पर 2030 से पहले विकास योजना’’ को गहरा करने के लिए दो संयुक्त बयानों पर हस्ताक्षर किए। शी जिनपिंग ने मॉस्को की तीन-दिवसीय यात्रा यूक्रेन संघर्ष में शांति वाहक के तौर पर अपनी भूमिका दर्शाने के लिए की थी। उन्होंने इस दिशा में शांति वार्ता योजना को आगे बढ़ाने की मांग की, जिस पर यूक्रेन के प्रमुख सहयोगी अमेरिका से ठंडी प्रतिक्रिया मिली। मार्च 2013 में पहली बार चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद से शी की रूस की इस यात्रा को दोस्ती, सहयोग और शांति की यात्रा बताया गया है। इसके अलावा चीन ने कहा है कि राष्ट्रपति शी की हाल में समाप्त हुई रूस की राजकीय यात्रा दोस्ती, सहयोग और शांति की यात्रा थी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि चीन यूक्रेन संघर्ष में तटस्थ है और उन्होंने यह भी दोहराया कि बीजिंग का यूक्रेन मुद्दे पर कोई स्वार्थी मकसद नहीं है, वह मूक दर्शक नहीं बना हुआ है… या इस अवसर का लाभ नहीं उठा रहा है।

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उन्होंने कहा कि चीन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विशिष्ट गठबंधन का विरोध करते हैं, जो क्षेत्र में इस तरह की गठबंधन की राजनीति को बढ़ावा देगी और खेमेबाजी से टकराव पैदा होगा, जो स्पष्ट रूप से अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान के गठबंधन ‘क्वाड’ और ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के गठबंधन ‘ऑकस’ के संदर्भ में है। दोनों पक्षों ने इस बात का जिक्र किया है कि अमेरिका शीतयुद्ध की मानसिकता में जी रहा है और हिंद-प्रशांत रणनीति का अनुसरण करता है, जिसका क्षेत्र में शांति और स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि चीन और रूस एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक समान, खुली और समावेशी सुरक्षा प्रणाली बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि बनाए रखने के लिए किसी अन्य देश को निशाना नहीं बनाता है। अमेरिका, भारत और कई अन्य विश्व शक्तियां संसाधन संपन्न क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य दखल की पृष्ठभूमि में एक स्वतंत्र, खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत को सुनिश्चित करने की आवश्यकता के बारे में बात कर रही हैं। चीन का दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में सीमा क्षेत्र को लेकर विवाद है। बीजिंग ने पिछले कुछ वर्षों में अपने मानव निर्मित द्वीपों का सैन्यीकरण करने में भी काफी प्रगति की है। रूस ने यूक्रेन युद्ध पर जल्द ही शांति वार्ता फिर से शुरू करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, जिसकी चीन ने सराहना की।

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